tughlaqi farman meaning in hindi: अक्सर हम किसी ऐसे सरकारी आदेश या निर्णय को 'तुगलकी फरमान' कह देते हैं, जो अव्यावहारिक, तर्कहीन या बिना सोचे-समझे लिया गया हो और जिसके परिणाम विनाशकारी साबित हों। यह मुहावरा आज भी हमारी बोलचाल का हिस्सा है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह शब्द आया कहाँ से और इसका संबंध किस ऐतिहासिक शासक से है? दरअसल, 'तुगलकी फरमान' का सीधा संबंध दिल्ली सल्तनत के एक ऐसे बादशाह से है, जिसे इतिहास में 'बुद्धिमान मूर्ख' या 'विद्वान मूर्ख' के नाम से जाना जाता है – मुहम्मद बिन तुगलक।
कौन था मुहम्मद बिन तुगलक?
मुहम्मद बिन तुगलक (शासनकाल: 1325-1351 ईस्वी) दिल्ली सल्तनत के तुगलक वंश का दूसरा शासक था। वह अपने पिता गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा। इतिहासकार उसे मध्यकालीन भारत के सबसे पढ़े-लिखे और विद्वान शासकों में से एक मानते हैं। उसे अरबी, फारसी, गणित, ज्योतिष, चिकित्सा और दर्शनशास्त्र का गहरा ज्ञान था। उसकी लिखावट भी बहुत सुंदर थी। वह नए प्रयोगों और सुधारों में विश्वास रखता था, लेकिन उसकी दूरदर्शिता के बावजूद, उसके फैसलों में व्यावहारिक दृष्टिकोण की कमी थी, जिसके कारण उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा और वह बदनाम हुआ।
किन फैसलों से हुआ बदनाम?
मुहम्मद बिन तुगलक के कई ऐसे फैसले थे, जिन्हें उसकी 'तुगलकी फरमान' की उपाधि का आधार माना जाता है: राजधानी का दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरण: 1327 ईस्वी में, तुगलक ने अपनी राजधानी को दिल्ली से महाराष्ट्र के दौलताबाद (देवगिरी) स्थानांतरित करने का आदेश दिया। उसका मानना था कि दौलताबाद साम्राज्य के केंद्र में है, जिससे दक्षिण भारत पर बेहतर नियंत्रण हो सकेगा। उसने न केवल अपनी सरकार, बल्कि दिल्ली की पूरी आबादी को भी इस लंबी और कठिन यात्रा पर जाने के लिए मजबूर किया। इस अव्यावहारिक और बिना तैयारी के लिए गए निर्णय के कारण हजारों लोग रास्ते में ही मारे गए, और जो पहुँचे, उन्हें नई जगह पर भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कुछ ही वर्षों में, उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और राजधानी को वापस दिल्ली स्थानांतरित करना पड़ा, जिससे और भी अधिक जनहानि और आर्थिक नुकसान हुआ।
सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन: 1330 ईस्वी में, सोने और चांदी के सिक्कों की कमी को देखते हुए, तुगलक ने पीतल और तांबे के सांकेतिक सिक्के जारी किए, जिनका मूल्य चांदी के सिक्कों के बराबर घोषित किया गया। यह विचार चीन और ईरान से प्रेरित था। हालाँकि, उसने मुद्रा ढालने पर राज्य का नियंत्रण नहीं रखा, जिससे हर घर एक टकसाल बन गया। लोगों ने बड़े पैमाने पर जाली सिक्के बनाने शुरू कर दिए, जिससे राज्य का खजाना खाली हो गया और अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई। अंततः उसे सांकेतिक मुद्रा को वापस लेना पड़ा।
विफल सैन्य अभियान: तुगलक की महत्वाकांक्षाएँ बहुत बड़ी थीं, लेकिन उसके सैन्य अभियान अक्सर विफल रहे। उसने खुरासान (मध्य एशिया) को जीतने के लिए एक विशाल सेना तैयार की और उन्हें अग्रिम वेतन भी दिया, लेकिन यह अभियान कभी शुरू ही नहीं हो सका। इसी तरह, कराचिल (हिमालयी क्षेत्र) को जीतने के लिए भेजा गया उसका अभियान भी बुरी तरह विफल रहा, जिसमें उसकी अधिकांश सेना नष्ट हो गई। इन विफलताओं ने राजकोष को खाली कर दिया और साम्राज्य की प्रतिष्ठा को धूमिल किया।
दोआब में कर वृद्धि: उसने गंगा और यमुना के बीच के उपजाऊ क्षेत्र 'दोआब' में राजस्व में वृद्धि की योजना बनाई। दुर्भाग्य से, यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया जब उस क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा हुआ था। इसके बावजूद, अधिकारियों ने सख्ती से कर वसूली की, जिससे किसानों में भारी असंतोष फैल गया और वे अपने खेत छोड़कर भागने लगे। इस कदम ने जनता को राज्य के खिलाफ कर दिया।
इब्न बतूता ने क्या बताया है तुगलक के बारे में?
प्रसिद्ध मोरक्को यात्री और विद्वान इब्न बतूता मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल (1333-1342 ईस्वी) के दौरान भारत आया था और उसने उसके दरबार में काजी (न्यायाधीश) के रूप में लगभग नौ साल बिताए। इब्न बतूता ने अपनी पुस्तक 'रिहला' में तुगलक के बारे में विस्तृत वर्णन किया है। वह तुगलक को एक विरोधाभासी व्यक्तित्व के रूप में चित्रित करता है – एक ओर वह अत्यधिक उदार, दानशील और विद्वान था, जो हर दिन किसी न किसी भिखारी को अमीर बनाता था, वहीं दूसरी ओर वह अत्यंत क्रूर और कठोर भी था, जो हर दिन किसी न किसी व्यक्ति को मृत्युदंड देता था। इब्न बतूता ने उसके फैसलों की अव्यावहारिकता और उनके विनाशकारी परिणामों का भी उल्लेख किया है।
'तुगलकी फरमान' शब्द मुहम्मद बिन तुगलक के उन फैसलों का प्रतीक बन गया है जो अच्छी मंशा से शुरू हुए, लेकिन खराब योजना और क्रियान्वयन के कारण विनाशकारी साबित हुए। उसकी विद्वत्ता और दूरदर्शिता के बावजूद, वह जनता की वास्तविक परिस्थितियों को समझने में विफल रहा और उसके निर्णयों ने दिल्ली सल्तनत को आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमजोर कर दिया। आज भी, जब कोई निर्णय बिना सोचे-समझे और अव्यावहारिक तरीके से लिया जाता है, तो उसे 'तुगलकी फरमान' कहकर याद किया जाता है, जो इतिहास के इस 'बुद्धिमान मूर्ख' बादशाह की स्थायी विरासत है।