कल्पवासी को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। प्रतिदिन त्रिवेणी स्नान करना जरूरी है। इस अवधि में जितना चुप रहा जाए उतना बेहतर है। प्रतिदिन दान व सत्संग में शामिल होना चाहिए। प्रतिदिन शाम को दीपदान किया जाना चाहिए। घी मिश्रित तिल का हवन और भगवान माधव के नाम का 108 बार जाप करना चाहिए।
संगम क्षेत्र में कल्पवासी को दान लेने से बचना चाहिए। भूमि पर सोना व तेल, साबुन का उपयोग न करना ही उचित रहता है। कल्पवास पूरा होने पर अपने आचार्य से या उनकी अनुमति से उद्यापन करना अनिवार्य है। संतजनों ने कहा है कि कल्पवास के नियमों का पालन करने से मन व शरीर का कायाकल्प हो जाता है।
कल्पवास में दान : कल्पवास की अवधि में इक्कीस तिल के लड्डू ब्राह्मणों को दान करना चाहिए। प्रयाग में जिन 84 दान का उल्लेख मिलता है, प्रत्येक कल्पवासी को उसका अनुपालन करना चाहिए। संभव हो तो कल्पवास में प्रतिदिन एक ब्राह्मण दंपति को भोजन कराएं।
महात्माओं को वस्त्र, कमंडल, मृग छाल आदि का दान करें। घी के एक हजार दिए जलाने का विशेष महत्व है। दीपदान के बारे में तो यहां तक कहा गया है कि इससे दस पहले और दस आने वाली पीढ़ियों का उद्धार होता है। इसके अलावा कपूर का दीपदान करने से व्यक्ति का ओज बढ़ता है।
कल्पवास के उद्यापन की विधि : कल्पवास का संकल्प पूर्ण हो जाने पर उद्यापन किए जाने का विधान है। इसके लिए गंगा तट पर केले का मंडप बनाया जाना चाहिए। उसे तोरण फल और पुष्प चांदनी से आकर्षक बनाया जाता है। ईख (गन्ना) से चारों ओर द्वार बनाया जाना चाहिए। चार अंगुल ऊंची वेदी हो, दोपहर बाद सफेद तिल जल में डाल कर स्नान करें।
दीपक जलाएं व आसन पर बैठकर आचमन व प्राणायाम करें। गणपति पूजन के बाद आचार्य के पुण्य वचन सुनें। अपने सामर्थ्य के अनुसार एक, तीस या तैंतीस कलश की व्यवस्था करें। कलश पर सफेद वस्त्र रखकर उस पर स्वर्ण प्रतिमा रखें। प्रतिमा की पूजा करें और यह मंत्र पढ़ें।
श्री माधव दया सिंधो भक्तकामप्रवर्षण। माघ स्नानव्रतं मेऽद्य सफलं कुरु ते नमः॥
उद्यापन की रात्रि स्तुति गीत गाते और वाद्य यंत्र बजाते हुए व्यतीत करनी चाहिए। दूसरे दिन स्नान करके भगवान माधव की पूजा करें। ईशानकोण (उत्तर और पूरब का कोना) में ग्रहों की स्थापना करके पूजा करनी चाहिए। आठ, अट्ठाईस या आठ सौ बार ग्रहमंत्रों का पाठ करें। लकड़ी, चरु और तिल का हवन करें।
भगवान वेणी माधव के नाम के आरंभ और अंत में स्वाहा जोड़कर उच्चारण करें। भगवान माधव के अतिरिक्त अन्य देवों का विसर्जन करें। तीन भाग शकर से बने तैंतीस लड्डुओं को घी तथा सोने के साथ दान करें।
उद्यापन की यह क्रिया घर पर भी संपन्न की जा सकती है। यदि उद्यापन का सामर्थ्य न हो तो भगवान माधव की पूजा करें। एक दंपति को भोजन करा कर अन्न दान करें। इतना करने मात्र से भी कल्पवास का पूरा फल उसे मिलता है। कल्पवासी को उद्यापन के पश्चात भी सेवा और सत्संग के संकल्प का पालन करना पड़ता है। कुसंगति से अर्जित किया हुआ पुण्य नष्ट हो जाता है। - वेबदुनिया संदर्भ