देश के चारों कोनों में चार शंकर मठ स्थापित होने के बाद 200 वर्षों बाद दशनामियों द्वारा मठिकाओं की स्थापना हुई। इन्हें बाद में मढ़ी भी कहा गया। यह मढ़ियाँ संख्या में 52 थीं। 27 मढ़ियाँ भारतीयों की, चार मढ़ियाँ वनों की और एक मढ़ी लाओं की कहलाती है।
पर्वत, सागर और सरस्वती पदधारियों की कोई मढ़ी नहीं है। बावन मढ़ियों के अंतर्गत यह सारी संन्यास परंपरा समाजसेवा के लिए भी सक्रिय हैं। बाद में इनमें भी दंढी और गोसाई के दो भेद हुए। तीर्थ आश्रम सरस्वती एवं भारती नामधारी संन्यासी दंडी कहलाए। शेष गोसाइयों में गिने गए। बाद में इन्हीं दशनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए जिनमें से सात पंचायती अखाड़े आज भी सक्रिय हैं।
हरिद्वार के कुंभ में स्नान के लिए श्री पंचायती तपोनिधि, निरंजनी अखाड़ा, श्री पंचायती आनंद अखाड़ा, श्री पंचायती दशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंचायती आवाहन अखाड़ा, श्री पंचायती अग्नि अखाड़ा, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा और श्री पंचायती अटल अखाड़ा वर्षों से भाग लेते रहे हैं।
SUNDAY MAGAZINE
बाद में भक्तिकाल में इन शैव दशनामी अखाड़ों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन खड़े हुए। इन्हें अणि का नाम दिया गया। अणि यानि सेना। वैष्णव बैरागी साधुओं ने भी धर्म के संदर्भ में यह अखाड़े गठित किए, जिनमें तीन मुख्य थे। दिगम्बर अखाड़ा, श्री निर्वाणी अखाड़ा, श्री निर्मोही अखाड़ा। इनके अंतर्मन अनेक इकाइयाँ और भी थीं।
संन्यासियों और बैरागियों के लिए कुंभ के स्नान को लेकर भी द्वंद्व का इतिहास रहा है। लेकिन आजकल इनकी संयुक्त समिति गठित होने और सरकार द्वारा मान्यता दिए जाने से संघर्ष की स्थिति खत्म हो गई है। साधुओं की अखाड़ा परंपरा के बाद गुरु नामकदेव के पुत्र श्रीचंद्र द्वारा स्थापित उदासीन संप्रदाय भी श्री पंचायती अखाड़ा, बड़ा उदासीन एवं श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन नाम से सक्रिय हैं।
पिछली शताब्दी में सिख साधुओं के नए संप्रदाय निर्मल संप्रदाय और उसके अधीन श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा भी अस्तित्व में आया। इन सभी अखाड़ों के लिए कुंभ इस कारण भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके चुनाव व नई कार्यकारिणियों का इस दौरान गठन करने की परंपरा चली आ रही है।