मैत्रेयी गिरि जूना अखाड़े के माईबाड़े से जुड़ी हैं। फिर महानिर्वाणी और निरंजनी आदि अखाड़ों में भी कई साध्वियाँ महामंडलेश्वर पद पर हैं। गंगा के प्रति जागरूकता फैलाने और नदी को प्रदूषण मुक्त करने-रखने की कोशिशों की तरह साध्वियों ने अपने अखाड़ों के प्रभावशाली संतों को बार-बार झकझोरा है। मातृ-शक्ति महिला संतों के लिए महामंडलेश्वर की पदवी के साथ-साथ शंकराचार्य और पार्वत्याचार्य की पदवी उनके लिए भी सुनिश्चित करने की माँग जोर-शोर से कर रही हैं।
इस माँग को परंपरा की लीक पीटने के नाम पर बहुत दिनों तक अनदेखा नहीं किया जा सकता। तमाम आध्यात्मिक कार्यों सहित धर्मप्रचार में उनकी पहल और उनके नेतृत्व कौशल को देखते हुए पुरुष प्रधान संत समाज बहुत दिनों तक उन्हें उनका देय पाने से नहीं रोक सकता।
अखाड़ों के संन्यासी और बैरागी दोनों ही वर्गों में महिला संतों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जाहिर है इस कुंभ में महिला साध्वियों के लिए अलग छावनी भी बनानी पड़ी है। जूना अखाड़ा की माता चेतना गिरि, नैसर्गिका गिरि, करुणा गिरि, श्रद्धा, माँ दुर्गा गिरि और माँ अमिता गिरि समेत अनेक साध्वियाँ इस वक्त हरिद्वार में यज्ञ कराकर मातृ-शक्ति को जागृत कर रही हैं। बताता चलूं कि मां मैत्रेयी गिरि एवं पायलट बाबा के आश्रम के प्रति विदेशियों का आकर्षण भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
कभी भूमिगत समाधि लगाने के कारण सुर्खियों में आई जापानी मूल की साध्वी केकोआइकवा संत और श्रद्धालुओं के बीच खूब नाम और आदर कमा चुकी हैं। महानिर्वाणी अखाड़े में गीता भारती, निरंजनी अखाड़े में माँ योगशक्ति, संतोषी माता, संतोषानंद सरस्वती तो आह्वान अखाड़े से जुड़ी विभानंद गिरि की भक्ति और आस्था को प्रमाण की जरूरत नहीं है। तभी तो इनके अनुयायियों की संख्या भारी-भरकम है। फिर भी अखाड़ों में इन महिला संतों को प्रशासनिक अधिकार नहीं दिए गए हैं।
हालाँकि जिस गति से मातृ-शक्ति तमाम मध्ययुगीन वर्जनाओं को तोड़कर धर्मक्षेत्र में छा रही हैं उसे देखते हुए वे दिन दूर नहीं दिखते जब अखाड़ों के प्रशासनिक अधिकार भी उनके हाथ आएंगे। पुरुष संतों के गोरखधंधों के नित नए पर्दाफाश श्रद्धालुओं के मन में इन बेदाग साध्वियों के प्रति और अधिक आदर भाव और समर्पण पैदा कर रहे हैं। इन पर अधिक भरोसा दिख रहा है।
जहाँ तक महाकुंभ के व्यापक स्वरूप का सवाल है तो महिला संतों के अलावा साधना के विभिन्न रूप श्रद्धालुओं के आकर्षण का स्रोत बने हुए हैं। एक साधु कील की सेज पर सो रहा है तो दूसरा कील से बुने झूले पर झूल रहा है तो तीसरा अग्निकुंड के ऊपर झूले में भालों की चुभन और अग्नि के ताप से हो रहे शारीरिक कष्ट के मध्य भी भगवत्भक्ति में रमा है और उनके गुणगान कर रहा है। जाड़े में बर्फ से ठंडे जल में तपस्यारत साधु अब गर्मी आते ही आग की कुंडों के पास तपस्या में रम गए हैं। भक्ति का ऐसा हठ देखकर आमजन इन संतों की श्रद्धा में अनायास नतमस्तक होने को विवश हैं।