- प्रस्तुति : राजश्री पं. पूज्य नाना महाराज तराणेकर यानि वात्सल्यमूर्ति, देवतुल्य और एक ऐसे संत जिन्होंने न केवल मप्र बल्कि महाराष्ट्र के कई शहरों में आध्यात्मिक अलख जगाई। नाना आज हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी उपस्थिति और स्नेह उनके भक्तों को महसूस होते रहता है।
शुद्ध व सात्विक भावों के अलावा सहजता और भोलेपन से अगर भक्ति की जाए तब भगवान भी अपने भक्तों के लिए दौड़े चले आते हैं। यह कहावत नाना पर सही साबित होती है। जब भी नाना महाराज की एक झलक पाने के लिए भक्त इंतजार करते थे और नाना भी अपनी चिर-परिचित मुस्कान के माध्यम से अपने भक्तों को निहाल कर देते थे।
नाना महाराज यानि स्वयं भक्ति की प्रतिमूर्ति जिन्होंने नर्मदा यात्रा से लेकर कई ऐसी यात्राएँ की जिनमें उन्हें कई योगी पुरुषों के दर्शन हुए और सहज-सरल नाना ने अपनी इन यात्राओं से प्राप्त अनुभव व यौगिक अनुभवों को भक्ति के प्रसाद के रूप में अपने शिष्यों में खूब वितरित किया।
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दरअसल नाना के जीवन में कई ऐसी घटनाएँ घटित हुई हैं जो आज की युवा पीढ़ी के लिए आश्चर्य का विषय हो सकती हैं। इतना ही नहीं आज भी नाना महाराज तराणेकर का नाम सामने आते ही उनके भक्तों की आँखों में भावविह्वलता साफ परिलक्षित होती है। नाना महाराज तराणेकर स्वयं संगीत प्रेमी थे और प्रति वर्ष स्वयं पं. कुमार गंधर्व भी उनके सम्मुख प्रस्तुति देते थे।
नाना महाराज को मात्र 11 वर्ष की उम्र में वासुदेवानंद सरस्वती ने गुरु मंत्र दिया था। उन्होंने 36वें वर्ष में नर्मदा परिक्रमा की थी और तभी उन्हें माँ नर्मदा ने दर्शन भी दिए थे।
आज भी गीत मार्तंड के माध्यम से नाना महाराज के व्यक्तित्व व कृतित्व को सहज रूप से भक्तों के सामने रखा जाता है। नाना भले ही आज दैहिक रूप से हमारे बीच नहीं पर ऐसा महसूस होता है कि वे आज भी हमारे आसपास ही हैं।