आज से करीब 115 साल पहले उत्तरप्रदेश के इटावा जिले के अंतर्गत खितोरा स्थित नील की कोठी नामक निर्जन स्थान पर परम संत स्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ था। वे वर्तमान में जय गुरूदेव बाबा के नाम से जाने जाते थे। उनका वास्तविक नाम तुलसीदास था, जिसे बहुत कम लोग ही जानते होंगे। अपने प्रत्येक कार्य में अपने गुरुदेव का स्मरण कर, गुरु के महत्व को सर्वोपरि रखने वाले और जय गुरुदेव का उद्घोष करने वाले बाबा जय गुरुदेव इसी नाम से प्रसिद्ध हो गए।
परम संत बाबा जय गुरुदेव महाराज का आश्रम उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले में आगरा-दिल्ली राजमार्ग पर लगभग डेढ़ सौ एकड़ भूमि पर बना हुआ है। वे सन् 1952 से अध्यात्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। उनका नारा ‘जयगुरु देव, सतयुग आएगा’ था तथा उसके प्रचार का खास माध्यम दीवारें होती थी।
बाबा जय गुरुदेव के गुरु घूरेलालजी (दादा गुरु) थे, जो अलीगढ़ के चिरौली ग्राम के निवासी थे। संत घूरेलालजी के दो शिष्य थे। एक चंद्रमादास और दूसरे तुलसीदास (जय बाबा गुरुदेव)। कालांतर में चंद्रमादास भी नहीं रहे। गांव चिरौली में गुरु के आश्रम को राधास्वामी सत्संग भवन के नाम से जाना जाता है। वहां घूरेलाल महाराज के सत्संग भवन के साथ चंद्रमादास का समाधि स्थल भी है।
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बाबा वर्षों तक अपने गुरु के साथ झोपड़ी में रहें। गुरु घूरेलालजी ने बाबा को यह आदेश दिया था कि वे मथुरा के किसी एकांत स्थान पर आश्रम बनाकर गरीबों की सेवा करें। जब गुरु घूरेलालजी सन् 1948 में ब्रह्मलीन हो गए तब बाबा ने अपने गुरु स्थान चिरौली के नाम पर सन् 1953 में मथुरा के कृष्णा नगर में चिरौली संत आश्रम की स्थापना से अपने मिशन की शुरुआत की। अपने आश्रम में गुरु घूरेलालजी महाराज की पुण्य स्मृति में उन्होंने सफेद संगमरमर से निर्मित 160 फुट ऊंचे योग साधना मंदिर का निर्माण कराया।
यह समूचे ब्रज का सबसे ऊंचा व अनोखा मंदिर माना जाता है। यह मंदिर देखने से ताजमहल जैसा प्रतीत होता है, जिसकी डिजाइन में मंदिर-मस्जिद का मिलाजुला रूप है दिखाई देता है। यहां 200 फुट लंबा व 100 फुट चौड़ा हॉल बना हुआ है, जिसमें सत्संग के दौरान लगभग पचास-साठ हजार व्यक्ति एक साथ बैठ सकते हैं।
बाबा जय गुरुदेव ने अपनी साधना के बल पर ही इतना बड़ा आध्यात्मिक साम्राज्य स्थापित किया था। बाबा के देश-विदेश में 20 करोड़ से ज्यादा अनुयायी हैं। बाबा कहते थे- शरीर तो किराए की कोठरी है, इसके लिए 23 घंटे दो लेकिन इस मंदिर में बसने वाले देव यानी आत्मा के लिए कम से कम एक घंटा जरूर निकालो। इससे ईश्वर प्राप्ति सहज हो जाएगी। वे कहते थे- दुनिया में हर मर्ज की दवा है, हर समस्या का हल है, बस गुरु की शरण में चले आओ। बाबा की सोच व विचार गांव और गरीब दोनों से जुड़े थे।
दुनिया भर को शाकाहारी जीवन जीने का संदेश देने वाले बाबा जय गुरुदेव जीवन भर समाजसेवा में लगे रहे। उन्होंने गरीब तबके के लिए निशुल्क शिक्षण संस्थाएं व अस्पताल शुरू किए। बाबा ने अपने जीवनकाल में निशुल्क शिक्षा-चिकित्सा, दहेज रहित सामूहिक विवाह, आध्यात्मिक साधना, मद्यपान निषेध, शाकाहारी भोजन तथा वृक्षारोपण पर विशेष बल दिया। सभी शाकाहारी जीवन अपनाएं यही बाबा जय गुरुदेव की अपील है।
बाबा जय गुरुदेव का 116 वर्ष की उम्र में शुक्रवार, 18 मई 2012 की रात मथुरा में निधन हो गया। वे पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। आश्रम प्रबंधकों के अनुसार दस दिन गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में इलाज कराने के बाद उन्हें उनकी इच्छानुसार मथुरा स्थित आश्रम लाया गया था, जहां रात नौ बजकर 52 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली।
सोमवार को उनका हिंदू रीति-रिवाज से आश्रम परिसर में दाह संस्कार किया गया। उनके ड्रायवर ने उन्हें मुखाग्नि दी। वहां उपस्थित लाखों भक्तों ने रुंधे गले से बाबा को अंतिम विदाई दी।
20 करोड़ भक्तों के देवतुल्य बाबा अब इस दुनिया में नहीं हैं। बाबा जय गुरुदेव का निधन एक युग का अंत है।