निसंतान दंपत्ति के लिए वरदान है संतान सप्तमी का व्रत, जानें कब है संतान सप्तमी और क्यों है खास?

WD Feature Desk

शनिवार, 30 अगस्त 2025 (10:30 IST)
Santan Saptami Significance and Puja Vidhi: हिंदू धर्म में कई ऐसे व्रत और त्योहार हैं, जो संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और सुरक्षा के लिए रखे जाते हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण व्रत है संतान सप्तमी। यह व्रत न केवल संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है, बल्कि निसंतान दंपत्तियों के लिए भी किसी वरदान से कम नहीं माना जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व, तिथि और संपूर्ण पूजा विधि।

संतान सप्तमी व्रत का महत्व
संतान सप्तमी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है। इसे मुक्ता भरण व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है और बच्चों के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई निसंतान दंपति सच्चे मन से इस व्रत को रखता है, तो उनकी गोद सूनी नहीं रहती और उन्हें योग्य संतान की प्राप्ति होती है। यह व्रत माता-पिता और उनकी संतान के बीच के अटूट बंधन को दर्शाता है।

संतान सप्तमी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
वर्ष 2025 में, संतान सप्तमी का व्रत 30 अगस्त, शनिवार को रखा जाएगा।
• सप्तमी तिथि प्रारंभ: 29 अगस्त 2025, रात्रि 08:21 बजे
• सप्तमी तिथि समाप्त: 30 अगस्त 2025, रात्रि 10:46 बजे
उदया तिथि के अनुसार, यह व्रत 30 अगस्त को ही मनाया जाएगा। पूजा का शुभ मुहूर्त मध्याह्न में होता है, इसलिए दोपहर के समय पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है।

संतान सप्तमी व्रत की विधि
इस व्रत का पालन करने के लिए कुछ विशेष नियमों का ध्यान रखना जरूरी है।
पूजा सामग्री: पूजा के लिए मुख्य रूप से भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा, कलश, धूप, दीप, फूल, फल, कपूर, कलावा, अक्षत, रोली, हल्दी, और मीठी पूड़ी (सात की संख्या में) तैयार करें।

पूजा की विधि:
• सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
• इसके बाद व्रत का संकल्प लें।
• पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और भगवान शिव तथा माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
• एक कलश में जल भरकर उसे चौकी पर स्थापित करें और उस पर आम के पत्ते और नारियल रखें।
• अब विधि-विधान से शिव-पार्वती की पूजा करें। उन्हें धूप, दीप, फल और फूल अर्पित करें।
• इसके बाद, मीठी पूड़ियों को केले के पत्ते में लपेटकर या सात अलग-अलग पत्तों पर रखकर भगवान को भोग लगाएं।
• हाथ में सूती का डोरा या चांदी की चूड़ी पहनें, जिसे पूजा के बाद संतान को पहनाया जा सकता है।
• पूजा के दौरान संतान सप्तमी की व्रत कथा का पाठ करें।
• अंत में, आरती करके पूजा को संपन्न करें।
संतान सप्तमी का व्रत सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ करने से भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो निसंतान दंपत्तियों के जीवन में खुशियां भर देता है।
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