इस प्रसंग में आचार्य गौर कृष्ण दर्शन तीर्थ कहते हैं चातुः साम्प्रदायिक वैष्णवों के लिए आवश्यक रूप में एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है। एकादशी व्रत करने से जीवन के संपूर्ण पाप विनष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को सहस्रों यज्ञों के समान माना गया है। ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासी तथा विधवा स्त्रियां भी एकादशी व्रत के अधिकारी हैं। एकादशी व्रत त्याग कर जो अन्न सेवन करता है, उसकी निष्कृति नहीं होती। जो व्रती को भोजन के लिए कहता है, वह भी पाप का भागी होता है।