संत तुकडोजी या तुकड़ो जी महाराज का जन्म (1909–1968) महाराष्ट्र के अमरावती जनपद के यावली नामक एक गांव में गरीब परिवार में हुआ था। उन्होंने वहां और बरखेड़ा में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की। उनके प्रारंभिक जीवन में उन्होंने कई महान संतों से संपर्क किया, लेकिन समर्थ अडकोजी महाराज की उन पर विशेष कृपा रही और वे उनके शिष्य बने।
तुकडोजी महाराज का मूल नाम माणिक था। तुकडोजी महाराज का नाम इसलिए तुकडोजी है क्योंकि भजन गाते समय जो भीख मिलती थी, उस पर ही उनका बचपन का जीवन बीता था। उनका ये नाम उनके गुरु अडकोजी महाराजन ने रखा था। वे स्वयं को ‘तुकड्यादास’ कहते थे।
महाराज ने लगभग 1935 में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। कहते हैं कि इसमें लगभग 3 लाख से भी ज्यादा लोगों ने भाग लिया था। इसके चलते उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी। जिसके चलते 1936 में उन्हें महात्मा गांधी द्वारा सेवाग्राम आश्रम में निमंत्रित किया गया। वहां वे लगभग एक माह तक रहे और फिर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
जेल से छुटने के बाद बाद उन्होंने अमरावती के पास मोझरी में गुरुकुंज आश्रम की स्थापना की। वहां उन्होंने अपने अनुभवों और अंतदृष्टि के आधार पर 'ग्रामगीता' की रचना की, जिसमें उन्होंने वर्तमानकालिक स्थितियों का निरूपण करते हुए ग्रामीण भारत के विकास के लिए एक नया विचार प्रस्तुत किया। वे मानते थे कि ग्राम विकास होने से ही राष्ट्र विकास होगा। उनकी विचारधारा का केंद्रबिंदु ग्रामोन्नति एवं ग्रामकल्याण ही था। इसी कारण उन्होंने ग्रामविकास की विविध समस्याओं के मूलभूत स्वरूप का विचार प्रस्तुत किया और उसे कैसे सुलझाएं इस विषय पर उन्होंने उपाय और योजनाएं भी बताई।
संत तुकडोजी महाराज ने महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश में भ्रमण कर आध्यात्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकात्मता का उपदेश दिया। इतना ही नहीं उन्होंने 1955 में जापान जैसे देश में जाकर सबको विश्वबंधुत्व का संदेश भी दिया था। 1956 में उन्होंने स्वतंत्र भारत का पहला संत संगठन बनाया। अंतिम समय तक अपने प्रभावी खंजडी भजन के माध्यम से उन्होंने अपनी विचारप्रणाली का प्रचार तथा आध्यात्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय प्रबोधन किया। उनके संगठन के सेवक आज भी सक्रिय है।