धर्म-कर्म से भरा माघ का महीना

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माघ का महीना जहाँ मनुष्य को धर्म-कर्म की ओर प्रवृत करता है वहीं ऋतु परिवर्तन के साथ मानव प्रवृतियों को भी संतुलित करने के संदेश देता है। तन की शुद्धि और मन की निर्मलता से मनुष्य परमात्मा के निकट पहुँचने के लिए तैयार रहता है। इसलिए प्रत्येक ऋतु, प्रत्येक महीना और प्रत्येक दिन किसी न किसी उपासना से जुड़ा हुआ है।

बचपन से मनुष्य को धर्म का आचरण पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए। बचपन में जैसा अभ्यास पड़ जाएगा वह जीवन पर्यन्त रहेगा। इसीलिए हमारे शास्त्रों-पुराणों में आचरण, शुद्धि एवं संस्कार उत्पन्न करने के लिए योग प्राणायाम, जप व स्वाध्याय का बहुत महत्व बताया गया है।

इन दिनों मंदिरों में विशेष धार्मिक अनुष्ठान, सत्संग, प्रवचन के साथ माघ महात्म्य तथा पुराण कथाएँ चल रही हैं। आचार्य विद्वानों द्वारा धर्माचरण की शिक्षा देने वाले प्रसंगों को श्रोताओं के समक्ष रखा जा रहा है। कथा प्रसंगों के माध्यम से तन-मन की स्वस्थता बनाए रखने के लिए अनेक प्रसंग सुना रहे हैं। उन्होंने कहा सूर्योदय से पहले स्नान करने से मनुष्य में धर्म-कर्म वृत्ति बढ़ने लगती है।

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माघ के महीने में हो सके तो नदियों सरोवरों के जल में स्नान कर सूर्य को गायत्री मंत्र उच्चारण करते हुए अर्घ्य देना चाहिए। जो लोग घर पर स्नान करके अनुष्ठान करना चाहते हैं, उन्हें थोड़ा-सा गंगाजल पानी में मिलाकर उनमें तीर्थों का आह्वान करके स्नान करना चाहिए।

एक समय वन में रघुवंशी राजा दिलीप विचरण करते हुए सरोवर के तट पर ऋषियों को अनुष्ठान करते हुए देखते हैं तथा ऋषियों द्वारा माघ स्नान, जप-तप, दान-पुण्य की बात सुनकर राजधानी लौटने पर उन्होंने इस बारे में गुरु वशिष्ठ से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने धर्मोदेशों से राजा दिलीप का जीवन त्याग और तपस्यामय बना दिया। आज इतिहास में गौ भक्तों के श्रेष्ठ उदाहरण के रूप में दिलीप का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

धर्म के आचरण में आलस्य नहीं करना चाहिए। बचपन से मनुष्य को धर्म का आचरण पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए। बचपन में जैसा अभ्यास पड़ जाएगा वह जीवन पर्यन्त रहेगा। इसीलिए हमारे शास्त्रों पुराणों में आचरण, शुद्धि एवं संस्कार उत्पन्न करने के लिए योग प्रणायाम, जप स्वाध्याय का बहुत महत्व बताया है।

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