पवित्र विचार करेंगे दुख दूर...

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भगवान ने सृष्टी की रचना करके मनुष्य को अपने जन्म को सार्थक करने का मौका दिया है। ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता। कई पुण्यकर्मों के उदय के बाद मनुष्य जीवन प्राप्त होता है। हमें उसे सार्थक करने के लिए अच्छे कार्यों में लगाना चाहिए।

मनुष्य को अगर भगवान को पाने की इच्छा है तो उसे भगवान के पास आना पड़ता है। ईश्वर की भक्ति हृदय से करना पड़ती है, उनको हृदय से पुकारोंगे, चरणों में श्रद्धा से झुकोगे तो वे तुम्हारे रोम-रोम में बस जाएँगे। अतः भगवान की भक्ति आत्मानुभूति के साथ, उन्हें हृदय में बैठाकर उनके मार्ग पर चलना ही है।

मुनि-संत तो आपके बीच भगवान का पोस्टमैन बनकर आते हैं, जिस प्रकार पोस्टमैन किसी की लिखी हुई चिठ्ठी बिना उसमें कुछ लिखा-पढ़ी, अपनी तरफ से नहीं जोड़ता है, उसी प्रकार मुनि भी जो धर्मोपदेश आपको देते रहते हैं, वह धर्मग्रंथों में से ही लिए गए हैं।

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भगवत प्राप्ति हेतु परिग्रह की लालसा छोड़कर मन का मैल दूर करके उसे निर्मल करें। विषय एवं कषाय के भावों से दूर रहें तभी प्रभु की प्राप्ति हो सकती है। विषयों के वशीभूत जीवन बाहर से अलग होता है अंदर से अलग, जिससे मन में विकृति आती है।

परिग्रह की लालसा छोड़ त्याग भाव को अपनाएँ। अपने विचारों में पवित्रता, वाणी में मधुरता, व्यवहार में कुशलता और चेहरे की प्रसन्नता ये चार सूत्र हर व्यक्ति को सुखी बना सकते हैं, वर्तमान दौर से गुजरता इंसान तनाव की अधिकता से आत्म-विश्वास को कायम नहीं रख सकता यही उसके दुख का मुख्य कारण है। इन दुखों को दूर करने के लिए हर मनुष्‍य को लालसा का त्याग करके अपने जीवन को निर्मल एवं पवित्र बनाना चाहिए।

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