तन और मन दोनों की निर्मलता से की गई उपासना तुरंत फलीभूत होती है। इसीलिए यम, नियम, आसन प्राणायाम आदि द्वारा तन और मन को शुद्ध करने की बात कही गई है। विधि और विधान के द्वारा व्यवस्था अनुशासित होती है। बिना अनुशासन के न तो समाज की रह सकता है न ही धार्मिक कर्म। उपरोक्त विचार पं. घनश्याम शास्त्री ने अपने प्रवचन में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा ब्राह्मणों को बिना कारण भी वेदों का स्वाध्याय करते रहना चाहिए। इससे ज्ञान की वृद्धि एवं वाणी का तप बढ़ता है। मंत्रों का अशुद्ध उच्चारण करने से सारी क्रियाएं निरर्थक चली जाती हैं। अतः स्वाध्याय एवं अभ्यास से ही शास्त्र परिपक्व होते हैं। मंत्र सिद्ध द्विज द्वारा दिया गया आशीर्वाद अपना प्रभाव दिखता है।
शिवालयों में नित्य शिवार्चन एवं वैदिक मंत्रों से विशेष पूजा-अर्चना हो रही है। यथा शक्ति एवं श्रद्धापूर्वक की गई पूजा भगवान स्वीकार करते हैं। वस्तुतः भक्ति में ही शक्ति है। जब व्यक्ति अपने पुरुषार्थ के बाद भी पूरी सफलता प्राप्त नहीं कर पाता तो समझ लेना चाहिए उसके जीवन में ईश्वर भक्ति के बल का अभाव है। प्रभु भक्ति से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है। श्रावण मास में शिवालयों में शिवभक्त विद्वानों द्वारा रुद्रीपाठ, महामृत्युंजय जप एवं शिव स्तुति के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।