भगवान को मानते सभी है, मगर जानते नही हैं। भगवान तो परिपूर्ण हैं, उनके पास हर सुख और ऐश्वर्य है। इसलिए वे हमेशा भक्त के पास होते हैं। भक्त को दुखी देखकर उनको भी दुख होता है। ऐसी स्थिति में जब भक्त उनको माता-पिता मानकर दोनों हाथ उठाकर रोता है तो वे भी भक्त को गले लगाने के लिए दौड़ पड़ते हैं।
संसार में आकर भूल जाते हैं : संसार में मनुष्य के पास केवल सात दिन होते हैं, इन्ही दिनों में उसका जन्म भी होता है और वह मृत्यु को भी प्राप्त करता है। मनुष्य मृत्यु लोक में आने के बाद कर्म और भगवत आराधना को भूलकर संसार के मोह-माया में भटक जाता है। वह भूल जाता है कि उसका जन्म किस उद्देश्य और लक्ष्य प्राप्ति के लिए हुआ है।
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परमात्मा ज्ञान और सत्य स्वरूपः परमात्मा ज्ञान और सत्य स्वरूप में हर जगह विद्यमान हैं। जब आत्मा का परमात्मा में विलय हो जाता है तो जीव अपना सबकुछ त्याग कर परमात्मा में लीन हो जाता है। ऐसा होना ठीक उसी प्रकार का उपक्रम है जैसे पानी का हर बूंद सागर में जाकर विलीन हो जाता है।
भगवान करते हैं भवसागर पार : संसार में आकर जो मनुष्य भगवान के शरण में रहते हैं, उनको जीवन-मरण और इस भवसागर से पार करने का दायित्व भगवान खुद उठाते हैं। ऐसा तभी संभव हो सकता है, जब मनुष्य अंतरमन से भगवान की आराधना और भक्ति करें।
किसी भी कथा अथवा धर्म स्थल पर जाने से पहले उसकी महत्ता को जानना चाहिए। तभी कथा और धर्म स्थलों की यात्रा में आनंद की प्राप्ति होगी।