औघड़ संत कमलराम के अनुसार औघड़ों के बनाए श्वशानों की भस्मि शरीर को भस्मिभूत कर उसे कपाल में धारण करने से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही नहीं सभी प्रकार के पापों से मुक्ति भी मिलती है।
कीनाराम अघोर शोध संस्थान बांसाझाल में श्रद्घालुओं को संबोधित करते हुए औघड़ संत कमलराम ने कहा कि प्राणी यदि भस्मि लगाए औघड़ संतो को देखता है तो वह नर्क से निकल जाता है, जो उन्हें प्रणाम करता है, उसमें महान नम्रता के गुण परिलक्षित होते हैं। जो ललाट पर भस्मि लगाए औघड़ों की सेवा करते हैं, वह सभी प्रकार के सुख और सुविधाओं से संपन्न होते हैं।
उन्होंने कहा कि धर्म के प्रति अविश्वासी लोगों को ईश्वर से कोई लेना-देना नहीं रहता। उन्हें अपने निजी स्वार्थ से ही मतलब रहता है। उन्होंने कहा कि औघड़ों का चरित्र बिल्कुल व्यावहारिक होता है, वे हीन विचारों से मुक्त रहते हैं।
वे मानव कल्याण के सभी कार्यों का संपादन करते हैं। उन्होंने कहा कि रूद्र ही शिव हैं और शिव ही अघोर हैं, जिसे आज औघड़ कहते हैं। औघड़ साधु एक शक्ति है, इस शक्ति की जिसने भी उपेक्षा की है, उसे नुकसान उठाना पड़ा है।