कठोर अपशब्द भी हिंसा का रूप

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धार्मिक क्रिया कर लेना या सिर्फ तपस्या कर लेना धर्म नहीं है बल्कि हमारे भीतर जो राग-द्वेष, क्रोध, अहंकार आदि मलिनता से जितनी मुक्ति हमें मिले उतन धर्म हुआ समझना चाहिए।

उक्त विचार राजरत्नविजयजी ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जीव की हत्या करना ही हिंसा नहीं है कठोर अपशब्दों का प्रयोग करना भी हिंसा है। कर्मों को भोगे बगैर छुटकारा नहीं मिलता है। व्यक्ति यदि पाप करने का लेखा-जोखा नहीं रखता तो उसे अनंत गुणी वेदना को भुगतना पड़ता है।

उपवास शरीर, संयम इन्द्रिय संयम तप की साधना है। यह ब्राह्य दुनिया से भीतर की दुनिया में जाने का मार्ग है। संकल्प शक्ति, धैर्यशक्ति में वृद्धि करने वाला तत्व है। प्रत्येक धर्म में सावन-भादौ माह में उपवास करने की महत्ता बताई गई है। इसके अलावा जो जीवन भर कठोर अपशब्दों के प्रयोग से अपने आपको दूर रखता है वहीं हिंसा के मार्ग से बच सकता है।

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