इंदौर घराना शहर की शान और पहचान, इसे आगे बढ़ाना सबकी जिम्मेदारी: शाहबाज़ ख़ां
गुरुवार, 27 जनवरी 2022 (16:08 IST)
(अभिनव कला समाज के आयोजन याद-ए-अमीर में उठे अनेक महत्वपूर्ण मुद्दे)
इंदौर,उस्ताद अमीर ख़ां साहब की गायकी अर्थात इंदौर घराने के संगीत की विशेषताएं आज अधिकांश संगीत कलाकारों ने अपना रखीं हैं, यह बात और है कि कुछ कलाकार इंदौर घराने का नाम नहीं लेते और कुछ जानते ही नहीं कि ये ख़ासियत किस घराने की है। इंदौर घराने के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इसे आगे ले जाना हम सब की जिम्मेदारी है
यह बात उस्ताद अमीर ख़ां के सुपुत्र अभिनेता शाहबाज़ ख़ां ने अभिनव कला समाज द्वारा आयोजित याद-ए-अमीर कार्यक्रम में कही। कार्यक्रम में श्री ख़ां बहुविध संस्कृतिकर्मी आलोक बाजपेयी से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने आव्हान किया कि इंदौर घराने को और आगे बढ़ाने की मुहिम इंदौर से प्रारम्भ होकर विस्तार पाए और सभी कलाकार, संस्थाएं, संगीत विद्यालय आदि इससे जुड़ें।
उन्होंने अभिनव कला समाज को उस्ताद अमीर ख़ां की रिकॉर्डिंग्स एवं संदर्भ उपलब्ध कराने का वादा किया। उन्होंने कहा कि इंदौर घराने की गायकी में कोई शॉर्टकट नहीं है, बहुत सब्र और समर्पण की जरूरत है।
श्री ख़ां ने अपने अतीत को याद करते हुए कहा कि वे टाटा-अंबानी के घर में भी पैदा हुए होते तो वो फ़ख्र महसूस नहीं करते, क्योंकि बाबा सुकून, संगीत और श्रोताओं के असीम प्रेम की दौलत छोड़ गए हैं। बाबा के इंतकाल के बाद अम्माजी की भावनात्मक स्थिति यह थी कि अव्वल तो वे ख़ां साहब का गाना सुनने नहीं देती थीं या सुन कर जार-जार रोती थीं।
अम्मी को मलाल था कि उस्ताद अमीर ख़ां साहब और इंदौर घराने को अपेक्षित गौरव मिलना शेष है। अम्मी ने ही उन्हें कहा कि वे गायकी के क्षेत्र में न आयें, क्योंकि उन्हें भय था कि कहीं और सीखने के कारण या किसी अन्य कारण से वे जो गायेंगे, वो बार-बार तुलना की कसौटी पर कसा जाएगा।
उन्होंने सगर्व कहा कि उनके बाबा और अम्मी दोनों ही बेहद संतोषी थे और वे फ़कीर बाबा और मां की परवरिश से बेहद अमीर हुई संतान हैं। उन्होंने कहा कि बाबा को विदेशों में बसने के बहुत ऑफर आए लेकिन उन्होंने कहा कि मैं जो करूंगा वह देश में करूंगा और देश को ही अपना सीखा हुआ देकर जाऊंगा।
उन्होंने संगीत के कुछ कलाकारों के पेशेवराना रुख के कारण शास्त्रीय संगीत को हुए नुकसान पर भी अफ़सोस व्यक्त किया और वर्तमान पीढ़ी के तुरंत सब चाहने की प्रवृत्ति पर भी दुःख व्यक्त किया। संगीत में भी फास्ट फ़ूड जैसा रुख अपनाने से पेट और दिमाग दोनों खराब हुए हैं, जबकि बाबा कहते थे कि नग़मा वही जो रूह सुने और रूह सुनाए।
श्री ख़ां ने कहा कि नई पीढ़ी के कलाकारों को उस्ताद अमीर ख़ां से संगीत के प्रति समर्पण और फक्कडपन सीखना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमीर ख़ां साहब की लोकप्रियता और उनके प्रति सम्मान का आलम यह था कि संगीतप्रेमी उनका हाथ पकड़कर भावुक होकर रोते थे।
एक काल्पनिक सवाल के उत्तर में उन्होंने कहा कि यदि बाबा कुछ बरस और जिए होते तो निःसंदेह वे फिल्म-टी.वी. अभिनेता की जगह गायक ही होते। प्रश्नों के रैपिड फायर राउंड में श्री ख़ां ने टीपू सुलतान को अपना प्रिय धारावाहिक और टी.वी. को अपना प्रिय माध्यम बताया। उन्होंने अपने लोकप्रिय संवाद भी सुनाकर दर्शकों को आल्हादित कर दिया।
उन्होंने अपनी माताजी एवं संगीतकार नौशाद साहब द्वारा उस्ताद अमीर ख़ां साहब पर लिखी रचनाओं की भावप्रवण प्रस्तुति से भी खूब दाद बटोरी। वहीं उनके द्वारा अभिनीत रावण के किरदार के तांडव स्त्रोत की सस्वर ओजपूर्ण अदायगी से तो उन्होंने दर्शकों को देर तक तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में अभिनव कला समाज के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल ने अभिनव कला समाज में उस्ताद अमीर ख़ां साहब की महफ़िलों के सुनहरे दौर को याद करते हुए इंदौर घराने को आगे बढ़ाने को शहर की सांस्कृतिक पहचान के लिए जरूरी बताया।
उन्होंने इंदौर घराने और उस्ताद अमीर ख़ां साहब की विरासत को सहेजने में अभिनव कला समाज की हर संभव, सार्थक एवं सशक्त भूमिका के प्रति आश्वस्त किया। शिक्षाविद प्रो. डॉ. आर. के. जैन ने उस्ताद अमीर ख़ां साहब पर शोधपीठ स्थापना का सार्थक सुझाव दिया। शाहबाज़ ख़ां एवं आलोक बाजपेयी का स्वागत कमल कस्तूरी, पं. सुनील मसूरकर, सत्यकाम शास्त्री, डॉ. जावेद अहमद शाह ने किया।
स्मृति चिन्ह विजय पारिख एवं विजय गावड़े ने भेंट किया। प्रारम्भ में कार्यक्रम संयोजक बुंदू ख़ां ने स्वागत उद्बोधन दिया। अंत में सोनाली यादव ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में संगीतप्रेमी और सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधि मौजूद थे।
संगीत जगत की महानतम हस्तियों के साक्षात्कार से सजी है डॉक्यूमेंट्री फिल्म– इन्सिप्रेशन
याद-ए-अमीर के पहले सत्र में दिखाई गई फिल्म इन्सिप्रेशन सुनहरे अतीत की यात्रा करवाती है जिसमें भारतीय संगीत जगत की सबसे महान हस्तियों – उस्ताद विलासत खान साहब, पं. रविशंकर जी, नृत्य सम्राज्ञी सितारा देवी जी से लगाकर आज के दौर के पं. शिवकुमार शर्मा जी, उस्ताद जाकिर हुसैन, हरिहरन तक ने उन्हें विश्व संगीत इतिहास के श्रेष्ठतम कलाकारों में शामिल किया है।
इंदौर के पद्मभूषण पं. गोकुलोत्सव जी महाराज कहते हैं कि उस्ताद अमीर ख़ां साहब जब सुर छेड़ते थे, तब बिखरा हुआ तानपुरा भी स्वतः ही मिल जाता था। इस फिल्म में उस्ताद अमीर ख़ां साहब के कई दुर्लभ दृश्य भी शामिल है, जिसमें इंदौर में अभिनव कला समाज में उनकी प्रस्तुति की रिकॉर्डिंग भी शामिल है। यह फिल्म उस्ताद जी के साहबजादे प्रसिद्ध अभिनेता शाहबाज़ ख़ां ने युवा पीढ़ी तक उनकी शैली और योगदान को पहुंचाने के उद्देश्य से बनाई है।