दरअसल, सुभाष चंद्र बोस कॉलेज की लाइब्रेरी में पढ़ाई कर रहे थे। तभी उन्हें पता चला कि एक अंग्रेज प्रोफेसर ने उनके कुछ साथियों को धक्का दिया। सुभाष चंद्र बोस क्लास के रिप्रेजेंटेटिव थे, वह तुरंत प्रिंसिपल के पास पहुंचे। उन्होंने इस बारे में चर्चा की। हालांकि अंग्रेज प्रोफेसरों का रवैया काफी बेकार था। इसलिए सुभाष चंद्र बोस ने प्रिंसिपल से कहा कि वे प्रोफेसर से कहे कि छात्रों से माफी मांगी। लेकिन प्रिंसिपल ने ऐसा करने से मना कर दिया।
अगले दिन छात्र हड़ताल पर बैठ गए। पूरे शहर में यह बात हवा की तरह तेजी से फैल गई। उन्हें भी कई लोगों का समर्थन मिलने लगा।अंतत: प्रोफेसर को झुकना पड़ा। कुछ दिन बाद प्रोफेसर ने यह वाक्या फिर छात्रों के साथ दोहराया। इसके बाद छात्रों ने कानून को हाथों में ले लिया और बल प्रयोग करने लगे। मामला इतना बढ़ गया कि जांच समिति बनी। जिसमें सुभाष चंद्र बोस ने अपने तर्कों के साथ पक्ष रखा। उनकी कार्रवाई को सही ठहराया गया। लेकिन कॉलेज के प्रिंसिपल ने सुभाष चंद्र बोस और उनके कुछ साथियों के नाम काली सूची में डाल दिया।