भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास ऐसे वीर-वीरांगनाओं की कहानियों से भरा पड़ा है जिनके योगदान को कोई मान्यता नहीं मिली है। ऐसे ही हमारे अमर शहीद गुलाबसिंह लोधी हैं जिनका योगदान भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी रहा है। लेकिन दुर्भाग्य यह रहा है कि अमर शहीद गुलाबसिंह लोधी को इतिहासकारों ने पूरी तरह से उपेक्षित रखा है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक वीर-वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध खुला विद्रोह किया और स्वतंत्रता की खातिर वे शहीद हो गए। इन्हीं शहीदों में क्रांतिवीर गुलाबसिंह लोधी का नाम भी शामिल है जिन्होंने अपने प्राणों की बाजी भारत मां को आजादी दिलाने के लिए लगा दी। उनका जन्म एक किसान परिवार में उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के ग्राम चंदीकाखेड़ा (फतेहपुर चैरासी) के लोधी परिवार में सन् 1903 में श्रीराम रतनसिंह लोधी के यहां हुआ था।
लखनऊ के अमीनाबाद पार्क में झंडा सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने उन्नाव जिले के कई सत्याग्रही जत्थे गए थे, परंतु सिपाहियों ने उन्हें खदेड़ दिया और ये जत्थे तिरंगा झंडा फहराने में कामयाब नहीं हो सके। इन्हीं सत्याग्रही जत्थों में शामिल वीर गुलाबसिंह लोधी किसी तरह फौजी सिपाहियों की टुकड़ियों के घेरे की नजर से बचकर आमीनाबाद पार्क में घुस गए और चुपचाप वहां खड़े एक पेड़ पर चढ़ने में सफल हो गए।
क्रांतिवीर गुलाबसिंह लोधी के हाथ में डंडा जैसा बैलों को हांकने वाला पैना था। उसी पैना में तिरंगा झंडा लगा लिया जिसे उन्होंने अपने कपड़ों में छिपाकर रख लिया था। क्रांतिवीर गुलाबसिंह ने तिरंगा फहराया और जोर-जोर से नारे लगाने लगे- 'तिरंगे झंडे की जय, महात्मा गांधी की जय, भारतमाता की जय।' अमीनाबाद पार्क के अंदर पर तिरंगे झंडे को फहरते देखकर पार्क के चारों ओर एकत्र हजारों लोग एकसाथ गरज उठे और 'तिरंगे झंडे की जय, महात्मा गांधी की जय, भारतमाता की जय' नारे लगाने लगे।
झंडा सत्याग्रह आंदोलन के दौरान देश की हर गली और गांव-शहर में सत्याग्रहियों के जत्थे आजादी का अलख जगाते हुए घूम रहे थे। झंडा गीत गाकर, झंडा ऊंचा रहे हमारा, विजय विश्व तिरंगा प्यारा, इसकी शान न जाने पाए, चाहे जान भले ही जाए, देश के कोटि-कोटि लोग तिरंगे झंडे की शान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए दीवाने हो उठे थे।
समय का चक्र देखिए कि क्रांतिवीर गुलाबसिंह लोधी के झंडा फहराते ही सिपाहियों की आंख फिरी और अंग्रेजी साहब का हुकुम हुआ, गोली चलाओ। कई बंदूकें एकसाथ ऊपर उठीं और धांय-धांय कर फायर होने लगे। गोलियां क्रांतिवीर सत्याग्रही गुलाबसिंह लोधी को जा लगीं जिसके फलस्वरूप वे घायल होकर पेड़ से जमीन पर गिर पड़े। रक्तरंजित वे वीर धरती पर ऐसे पड़े थे, मानो वे भारतमाता की गोद में सो गए हों। इस प्रकार वे आजादी की बलिवेदी पर अपने प्राणों को न्योछावर कर 23 अगस्त 1935 को शहीद हो गए।
क्रांतिवीर गुलाबसिंह लोधी के तिरंगा फहराने की इस क्रांतिकारी घटना के बाद ही अमीनाबाद पार्क को लोग 'झंडावाला पार्क' के नाम से पुकारने लगे और वह आजादी के आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय नेताओं की सभाओं का प्रमुख केंद्र बन गया, जो आज शहीद गुलाबसिंह लोधी के बलिदान के स्मारक के रूप में हमारे सामने है। मानो वह आजादी के आंदोलन की रोमांचकारी कहानी कह रहा है।
क्रांतिवीर गुलाबसिंह लोधी ने जिस प्रकार अदम्य साहस का परिचय दिया और अंग्रेज सिपाहियों की आंख में धूल झोंककर बड़ी चतुराई तथा दूरदर्शिता के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त किया, ऐसे उदाहरण इतिहास में बिरले ही मिलते हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अग्रणी भूमिका निभाने के लिए उनकी याद में केंद्र सरकार द्वारा जनपद उन्नाव में 23 दिसंबर 2013 को डाक टिकट जारी किया गया।
एक सच्चा वीर ही देश और तिरंगे के लिए अपने प्राण न्योछावर कर सकता है। ऐसे ही अमर शहीद गुलाबसिंह लोधी एक सच्चे वीर थे जिन्होंने अपने देश और तिरंगे की खातिर अपना बलिदान दे दिया और तिरंगे को झुकने नहीं दिया। अमर शहीद गुलाबसिंह लोधी का बलिदान देशवासियों को देशभक्ति और परमार्थ के लिए जीने की प्रेरणा देता रहेगा। आज हम वीर शहीद गुलाबसिंह लोधी को उनके 82वें बलिदान दिवस पर नमन करते हुए यही कह सकते हैं कि-