पंडित जवाहरलाल नेहरू के जीवन की 5 रोचक कहानियां, आप जरूर पढ़ें
Pandit Jawaharlal Nehru
1. नेहरू की 3 बातें
टेलीविजन पर पंडितजी जब पहली बार आए तब वहाi पर उपस्थित एक वृद्ध सज्जन ने उनसे पूछा,
-पंडितजी, आप भी सत्तर से ऊपर हैं, मैं भी। लेकिन क्या वजह है कि आप तो गुलाब के फूल की दिख पड़ते हैं और मैं हुं कि बुड्ढा हो चला?
एक क्षण के लिए पंडितजी सोच में पड़ गए और फिर मानो एक ऋषि की वाणी में उन्होंने कहा, - तीन बातें हैं।
पहली तो यह है कि मैं बच्चों में हिलमिल जाता हूं। उनसे प्यार करता हूं और उनकी मासूमियत में जिंदगी पाता हूं।
दूसरी यह कि हिमालय में मेरा मन सबता है। उन बफीर्ली चोटियों में, उन घने जंगलों में उस निर्मल हवा में मुझे नए प्राण मिलते हैं।
तीसरी बात यह है कि मैं छोटी-छोटी और औझी किस्म की बातों से ऊपर उठ सकता हूं। मेरी जहनियत पर उनका असर नहीं पड़ सकता। मैं तो जिंदगी, दुनिया और मसलों को ऊँची नजर से देखने की कोशिश करता हूं और इस लिए मेरी सेहत और मेरे विचार ढीले-ढाले नहीं हो पाते।
2. आत्मनिर्भरता
नेहरूजी इंग्लैंड के हैरो स्कूल में पढ़ाई करते थे। एक दिन सुबह अपने जूतों पर पॉलिश कर रहे थे तब अचानक उनके पिता पं. मोतीलाल नेहरू वहां जा पहुंचे।
जवाहरलाल को जूतों पर पॉलिश करते देख उन्हें अच्छा नहीं लगा, उन्होंने तत्काल नेहरूजी से कहा- क्या यह काम तुम नौकरों से नहीं करा सकते।
जवाहरलाल ने उत्तर दिया- जो काम मैं खुद कर सकता हूं, उसे नौकरों से क्यों कराऊं? नेहरू जी का मानना था कि इन छोटे-छोटे कामों से ही व्यक्ति आत्मनिर्भर होता है।
3. नसीहत
बात उन दिनों की है जब पंडित जवाहरलाल नेहरू लखनऊ की सेंट्रल जेल में थे। लखनऊ सेंट्रल जेल में खाना तैयार होते ही मेज पर रख दिया जाता था। सभी सम्मिलित रूप से खाते थे। एक बार एक डायनिंग टेबल पर एक साथ सात आदमी खाने बैठे। तीन आदमी नेहरूजी की तरफ और चार आदमी दूसरी तरफ।
एक पंक्ति में नेहरूजी थे और दूसरी में चंद्रसिंह गढ़वाली। खाना खाते समय शकर की जरूरत पड़ी। बर्तन कुछ दूर था चीनी का, चंद्रसिंह ने सोचा- 'आलस्य करना ठीक नहीं है, अपना ही हाथ जरा आगे बढ़ा दिया जाए।' चंद्रसिंह ने हाथ बढ़ाकर बर्तन उठाना चाहा कि नेहरू जी ने अपने हाथ से रोक दिया और कहा- 'बोलो, जवाहरलाल शुगर पॉट (बर्तन) दो।'
वे मारे गुस्से के तमतमा उठे। फिर तुरंत ठंडे भी हो गए और समझाने लगे- 'हर काम के साथ शिष्टाचार आवश्यक है।'
भोजन की मेज का भी अपना एक सभ्य तरीका है, एक शिष्टाचार है। यदि कोई चीज सामने से दूर हो तो पास वाले को कहना चाहिए- 'कृपया इसे देने का कष्ट करें।' शिष्टाचार के मामले में नेहरू जी ने कई लोगों को नसीहत प्रदान की थी। ऐसे थे जवाहरलाल नेहरू।
4. विनोदप्रिय नेहरू
एक बार एक बच्चे ने ऑटोग्राफ पुस्तिका नेहरू जी के सामने रखते हुए कहा- साइन कर दीजिए।
बच्चे ने ऑटोग्राफ देखें, देखकर नेहरू जी से कहा- आपने तारीख तो लिखी ही नहीं!
बच्चे की इस बात पर नेहरू जी ने उर्दू अंकों में तारीख डाल दी! बच्चे ने इसे देख कहा- यह तो उर्दू में है।
नेहरू जी ने कहा- भाई तुमने साइन अंगरेजी शब्द कहा- मैंने अंगरेजी में साइन कर दी, फिर तुमने तारीख उर्दू शब्द का प्रयोग किया, मैंने तारीख उर्दू में लिख दी। सा था नेहरू जी का बच्चों के प्रति विनोदप्रियता का लहजा।
5. नेहरू जी का बच्चों के प्रति प्रेम
नेहरू जी सिर्फ धनी लोगों के बच्चों को ही प्यार नहीं करते थे। गरीब परिवारों के बच्चों से भी उन्हें उतनी ही मोहब्बत थी।
एक दिन वे जब ऑफिस से घर लौट रहे थे, तो उन्होंने देखा लॉन में बहुत सी मजदूर औरतें काम कर रही है। उन्हीं में से किसी का बच्चा एक पेड़ के नीचे लेटा हुआ रो रहा था।
नेहरू जी उसके पास गए, उसे गोद में लेकर पुचकारा और उछाला। प्यार की थपकी पा कर बच्चा चुप हो गया। पंडितजी ने उसे उसकी मां को देते हुए कहा- 'बच्चे को इस तरह अकेले नहीं छोड़ना चाहिए।'