अटलांटिस की अबूझ पहेली

3500 साल पहले की बात है। तपा देने वाला गर्मियों का लंबा दिन खत्म होने को था। सूरज का प्रभाव कम होते ही लोग बाहर निकलने लगे थे। जाते-जाते भी सूर्य की किरणें उस छोटे-से द्वीप की सुंदरता को और बढ़ा रही थीं। गलियों में चहलकदमी करने वाले बढ़ते जा रहे थे। बच्चे किलकारियाँ मारते हुए खेल रहे थे। महिलाएँ भी फुर्सत के पलों का आनंद ले रही थीं। तभी...वह हुआ जिसके बारे में किसी ने सोचा नहीं था। अगले कुछ पलों में धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला अटलांटिस ध्वस्त और जलमग्न हो गया। वह भी ऐसे कि आज तक किसी को उसकी पुख्ता जानकारी नहीं मिली।
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कैसी थी अटलांटिस सभ्यता : अटलांटिस को उस समय धरती की सबसे खुशहाल जगह माना जाता था। वहाँ सोना और चाँदी के साथ ही बहुमूल्य पत्थरों की भरमार थी। द्वीप पर दूर-दूर तक हरे-भरे मैदान फैले थे। जमीन बहुत उपजाऊ थी। बड़ी तादाद में पशु-पक्षी थे, तो फलों के बगीचे भी थे। शहर को पाँच क्षेत्रों में बाँटा गया था। इस प्रकार शासन व्यवस्था भी आदर्श थी।

तभी...आई बर्बादी : एक दिन प्रलय आया और सबकुछ समाप्त हो गया। पूरी सभ्यता का नामों-निशान ही मिट गया। असल में वहाँ एक साथ कई आपदाओं ने हमला किया। इतिहास के मुताबिक, वहाँ ज्वालामुखी फटा तो समुद्र के पानी से उठी ऊँची लहरों ने समूचे द्वीप को अपने में समा लिया।

शुरुआत ज्वालामुखी के फटने से हुई। इससे निकली काली राख ने पूरे क्षेत्र में अंधेरा कर दिया। बड़ी मात्रा में समुद्र में राख मिलने से उसका रंग भी बदल गया। ज्वालामुखी से निकली बड़ी और गर्म चट्टानों की मानो बारिश ही होने लगी। कई जोर दार धमाके हुए।

वैज्ञानिकों का अंदाज वर्षों बाद भी वैज्ञानिक इस घटनाक्रम की तह तक नहीं पहुँच पाए हैं। केवल अंदाजा ही लगाया जा रहा है कि उस समय 500 से 1000 एटम बम फटने जैसी स्थिति पैदा हुई थी, जिसके चलते समूची सभ्यता का सफाया हो गया। सफाया भी इतने बड़े स्तर पर कि आज तक उसका कोई सबूत नहीं मिल पाया है।

आशा की किरण इस सिलसिले में जानकारों के सामने केवल एक द्वीप है, जिसे प्राचीन ग्रीक में कालीस्टे कहा जाता था। वैज्ञानिकों का कहना है कि कालीस्टे ही एक मात्र अवशेष है, जो अटलांटिस के बारे में कुछ जानने की संभावना बनाए रखता है। हालाँकि अभी तक यहाँ से भी कोई उल्लेखनीय जानकारी नहीं जुटाई जा सकी है।

प्लेटो की बात अटलांटिस के बारे में यह कहानी प्लेटो की दी हुई है। उन्होंने ही लिखा था कि अटलांटिस स्वर्ग था। वहाँ आलीशान महल और मंदिर थे, जिन पर सोने-चाँदे की परतें चढ़ी होती थीं। मंदिरों की दीवारें और आधार स्तंभ भी बहुमूल्य धातुओं के बने थे।
प्लेटो ने भगवान की एक मूर्ति का भी उल्लेख किया है, जो पूरी तरह से सोने की बनी है। आगे रथ खिंचते छह घोड़े भी दिखाए गए हैं। मूर्ति को समुद्र के देवता के रूप में पूजा जाता था।

स्वर्ग में भी इंसानी फितरत प्लेटो के बारे में कहा जाता है कि वे मानवीय स्वभाव के बहुत अच्छे जज थे। उन्होंने अटलांटिस को धरती का स्वर्ग तो करार दिया, लेकिन साथ ही वहाँ की नकारात्मक बातें भी लिखी हैं। प्लेटो ने एक स्थान पर बताया है कि अटलांटिस सभ्यता के राजाओं ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए दूसरे राज्यों पर हमले किए। उन्होंने बड़ी संख्या में नरसंहार कर दूसरे इलाकों पर कब्जा किया। वे केवल एथेंस से पार नहीं पा सके थे

भगवान की सजा : प्लेटो के मुताबिक, इस काम के लिए भगवान ने अटलांटिस वालों को सजा भी दी। यह सजा तुफान, बाढ़, भुकंप और ज्वालामुखी के रूप में होती थी। इन प्राकृतिक आपदाओं से अटलांटिस को समय-समय पर भारी नुकसान पहुँचा। ऐसा ही प्रलय एक दिन आया और समूची सभ्यता इतिहास बनकर रह गई।

क्या सही था प्लेटो : प्लेटो की इस कहानी पर इतिहास के कई जानकारों ने सवालिया निशान उठाए हैं। उनका सवाल है कि प्लेटो की कही बात को किस आधार पर सच मान लिया जाए?

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असल में प्लेटो की यह बात पीढ़ी दर पीढ़ी चली आई है। उनकी बात का मुख्य आधार उनका एक रिश्तेदार क्रिटियास था। क्रिटियास का कहना था कि उसने अपने दादा ड्रोपिडेस से इस बारे में सुना था। ड्रोपिडेस और उनके बाद के लोगों तक यह कहानी सोलान से पहुँची थी। सोलान का जिक्र 640 बीसी से 558 बीसी के मध्य आता है। कहा जाता है कि उस समय उनका बड़ा सम्मान किया जाता था और उनकी कही बातों को सच माना जाता था। सोलान की मृत्यु के दो सौ सालों बाद प्लेटो ने यह कहानी लिखी थी।

कुछ इतिहासकार कहते हैं कि स्वयं सोलान ने इस कहानी को पुख्ता नहीं बताया था। सोलान के हवाले से कहा जाता है कि कहानी पूरी तरह से सच नहीं है और उन्होंने इसे इजिप्ट के एक धर्मगुरु से सुनी थी। बाद में उन्होंने इसका अनुवाद कविता के रूप में किया था। हालाँकि जहाँ तक प्लेटो का प्रश्न है, उनकी लिखी बात ऐतिहासिक कम और दार्शनिक अधिक लगती है।

जितने मुँह, उतनी बातें अटलांटिस के अस्तित्व को लेकर उठाए जा रहे सवालों के बीच आज भी कई तरह की बातें सुनने में आती हैं। कुछ लोग कहते हैं कि ये लोग किसी दूसरे ग्रह से आए थे और इनके पास असीम शक्तियाँ थीं। तकनीकी रूप से भी ये आज से कहीं आगे थे। इन लोगों ने दुनिया में सबसे पहले पढ़ना और लिखना सीखा। यही नहीं, दुनिया भर में भ्रमण कर दूसरों को भी सिखाया।

अटलांटिस पर आज का विज्ञान 19वीं सदी में अटलांटिस के रहस्य का अध्ययन करने के लिए अमेरिका में एक नया विभाग बना दिया गया, जिसे अटलांटोलाजी नाम दिया गया। विभाग के प्रमुख इग्नाटस डोनेली ने एक किताब लिखी थी, जिसकी सैकड़ों प्रतियाँ पढ़ी गईं। डोनेली ने कई वैज्ञानिक पहलुओं से इसका अध्ययन किया और नतीजे पर पहुँचे कि अटलांसिट का अस्तित्व था। आज भी उनका सिद्धाँत काफी माना जाता है।

हालाँकि 20वीं सदी के वैज्ञानिक डोनेली की बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। इनका कहना है कि 360 लाख वर्ग मील तक फैल अटलांटिक का कोई निशान नहीं मिला है। जो कुछ भी मिला है, उसे अटलांटिस से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है।
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1912 में यह मामला उस समय फिर उछला जब न्यूयार्क के एक अखबार में इतिहासकार डा. पाल स्चलिमैन का एक लेख प्रकाशित हुआ। उन्होंने लिखा कि किस प्रकार उन्होंने अटलांटिस का पता लगाया।

बतौर सबूत उन्होंने अपने दादा के दिए कुछ दस्तावेज पेश किए। हालाँकि हाल के ही वर्षों तक ऐसे दावें होते रहे, लेकिन कोई भी जानकार मसले पर उल्लेखनीय दस्तावेज पेश नहीं कर सका है।

रहस्य बरकरार बहरहाल, प्लेटो की बात सच हो या कोरी कल्पना, पर एक सवाल अभी भी कायम है कि क्या कोई प्रलय ऐसा भी हो सकता है, जो समूची सभ्यता को लील जाए? प्राकृतिक आपदाएँ और भी देखीं हैं, लेकिन कोई सबूत ही ना मिले, ऐसा नहीं हुआ। जटिल से जटिल मसले हर कर लेने वाले वैज्ञानिक भी आज तक चुप्पी साधे हुए हैं, आखिर क्यों?

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