यह स्थिति तब है, जब इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने 2015 में आतंकवाद विरोधी अदालत को 2 महीने में मामले की सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया था। हमले का मास्टरमाइंड कहलाने वाला लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी एक तरह से बरी हो गया है, क्योंकि पाकिस्तान सरकार ने उसे मिली जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की योजना का कोई संकेत नहीं दिया है। सुनवाई में आ रहे नाटकीय मोड़, न्यायाधीशों को बार-बार बदले जाने और एक अभियोजक की हत्या के चलते लग रहा है कि अन्य 6 संदिग्धों को भी बरी किया जा सकता है।
पुलिस ने 9 हमलावरों को मार गिराया था जबकि एक आतंकवादी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया था। भारत में सुनवाई के बाद उसे फांसी दे दी गई थी। पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के 7 संदिग्धों लखवी, अब्दुल वाजिद, मजहर इकबाल, हमाद अमीन सादिक, शाहिद जमाल रियाज, जमील अहमद और यूनुस अंजुम के खिलाफ हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने का आरोप है। इनके खिलाफ 2009 से सुनवाई जारी है।
इस्लामाबाद को, खासकर राजनीतिज्ञों को अहसास है कि इस हमले की वजह से दोनों देशों के बीच दोस्ताना संबंध बनाने के तमाम प्रयास नाकाम हो गए। बहरहाल, इस बारे में राय अलग अलग है कि पाकिस्तान में दोषियों को सजा दिए जाने से दोनों देशों के रिश्ते सामान्य हो पाएंगे या नहीं? (भाषा)