अमेरिका का नया चंद्र अभियान 'आर्तेमिस', इरादा चंद्रमा पर अड्डा बनाना

अमेरिका इस समय एक बार फिर चंद्रमा पर जाने के लिए तैयार बैठा है। चंद्रमा पर सबसे पहले पहुंचने की होड़ में छह दशक पूर्व उसे विजय दिलाई थी उसके 'अपोलो' कार्यक्रम ने। इस बार के अभियान का नाम है 'आर्तेमिस' और इरादा है चंद्रमा पर अड्डा जमाने का। 
 
मौसम ने यदि रंग में भंग नहीं किया, तो अमेरिका 29 अगस्त को अंतरिक्ष में अपनी धाक जमाने के इतिहास का एक नया अध्याय आरंभ करेगा। 'केनेडी स्पेस सेंटर' के प्रक्षेपण मंच 39B पर से इस बार 98 मीटर लंबा एक बिल्कुल नया रॉकेट SLS (स्पेस लॉंचिंग सिस्टम) अपने साथ एक बिल्कुल नए अंतरिक्षयान (कैप्सूल) 'ओरॉयन' (Orion) को लेकर उड़ेगा। ओरॉयन का कमांडो मॉड्यूल अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने बनाया है, जबकि सर्विस मॉड्यूल (EMS) कहलाने वाली उसकी ऊर्जा आपूर्ति और प्रणोदन (प्रोपल्शन) प्रणाली को यूपोरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी 'एसा' (ESA) की ओर से यूरोपीय विमान निर्माता कंपनी 'एयरबस' ने बनाया है। 
 
नासा ने 1960-70 वाले अपने चंद्र-अभियान को 'अपोलो' नाम दिया था, जो उसके लिए बहुत शुभ साबित हुआ। यह नाम वास्तव में ग्रीस (यूनान) की पौराणिक कथाओं वाले एक देवता 'अपोलोनोस' के नाम से लिया गया था। अमेरिका अपने नए चंद्र-अभियान के लिए भी वैसा ही कोई शुभ नाम चाहता था। 'अपोलोनोस' की एक जुड़वां बहन भी थी– 'आर्तेमिस।' उसे चंद्रमा की देवी माना जाता था। अतः स्वाभाविक है चंद्रमा पर लौटने के अपने नए अभियान को नासा ने इसीलिए 'आर्तेमिस' नाम दिया है।
 
पहली उड़ान एक टेस्ट उड़ान है : सोने में सुहागा यह होगा कि 'आर्तेमिस' के अंतर्गत पहली बार महिला अंतरिक्षयात्रियों को भी चंद्रमा पर जाने का अवसर मिलेगा। 29 अगस्त वाली 'आर्तेमिस' श्रृखला की पहली उड़ान में हालांकि न तो कोई महिला होगी और न कोई पुरुष, क्योंकि यह पहली उड़ान एक परीक्षण उड़ान होगी– यह देखने लिए सब कुछ ठीक-ठीक काम करता है या नहीं।  
 
42 दिनों की इस पहली उड़ान में कोई जीता-जागता अंतरिक्षयात्री भले ही न हो, चंद्रमा तक जाने-आने और उसके फेरे लगाने वाले 'ओरॉयन' यान की चारों सीटें खाली नहीं रहेंगी। एक पर 'ओरॉयन' के पृथ्वी पर लौटते समय 'क्रैश टेस्ट' के लिए एक 'डमी' होगा और दो सीटों पर महिलाओं की शक्ल वाले दो 'फ़ैन्टम' पुतले होंगे। इन पुतलों को 'हेल्गा' और 'सोहा' नाम दिया गया है। 
 
यान की कमांडो-सीट पर भी स्त्री-रूपी एक पुतला बैठा होगा, जिसे 'कमांडर मूनीकिन काम्पोस' (Commander Moonikin Campos ) नाम दिया गया है। नासा के एक अधिकारी, भारतीय मूल के भव्य लाल ने बताया कि इन पुतलों में ऐसे यंत्र और सेंसर लगे होंगे, जो दर्ज करेंगे कि पृथ्वी पर से प्रक्षेपण और पृथ्वी पर वापसी के समय भावी अंतरिक्षयात्रियों के शरीर पर कितना बल पड़ेगा।
 
सौर एवं ब्रह्मांडीय विकिरण : वैज्ञानिक यह भी जानना चाहते हैं कि मानव शरीर को चंद्रमा की तरफ जाते समय, उसकी परिक्रमा के दौरान और पृथ्वी पर वापस आते समय, स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक कितना सौर एवं ब्रह्मांडीय विकिरण (रेडिएशन) झेलना पड़ेगा। अत्यंत सूक्ष्म किंतु ऊर्जावान कणों के रूप में विकिरिण की बौछार से बचाव के लिए भविष्य में क्या उपाय करने होंगे।
 
अनेक डिटेक्टरों एवं मापन यंत्रों से लैस 'हेल्गा' और 'सोहा' नाम वाले दोनों पुतलों और 'कमांडर मूनीकिन' के पुतले को 'ओरॉयन' की सीटों पर बिठाने के पीछे उद्देश्य है अंतरिक्ष में विकिरण की मात्रा और प्रभावों को भलीभांति जानना-समझना। देखा गया है कि अंतरिक्ष में महिलाओं पर विकिरिण का प्रभाव पुरुषों की अपेक्षा कुछ अलग और कहीं अधिक घातक होता है। 'हेल्गा' और 'सोहा' के माध्यम से विकिरण से बचाव के लिए बने एक नए स्पेस सूट और विशेष जैकेट को भी कसौटी पर कसा जाएगा। 
 
विकिरण संबंधी प्रयोग : विकिरण संबंधी सभी प्रयोगों की सूत्रधार जर्मनी की अंतरिक्ष एजेंसी DLR है। उसके विकिरण विशेषज्ञ टोमास बेर्गर का कहना है कि हम कुछ मूलभूत प्रश्नों के उत्तर चाहते हैं। उदाहरण के लिेए, खुले अंतरिक्ष में मनुष्य को कितना विकिरण झेलना पड़ेगा? फ़िलहाल हमारा ज्ञान अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से मिले अनुभवों तक ही सीमित हैं। हम जानना चाहते हैं कि खुले अंतरिक्ष में विकिरण के ख़तरे का क्या आयाम है और क्या वह अंतरिक्ष स्टेशन ISSकी अपेक्षा बहुत अधिक है? क्या इसके कारण कैंसर होने का ख़तरा बहुत बढ़ जाता है?
 
उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पिछले क़रीब दो दशकों से पृथ्वी से 400 किलोमीटर की दूरी पर रह कर उसकी निरंतर परिक्रमा कर रहा है। विभिन्न देशों के अंतरिक्षयात्री कुछ दिनों से लेकर कई-कई महीनों तक उस पर रह चुके हैं। उस पर रहने के अनुभव बहुत उपयोगी अवश्य हैं, किंतु बाह्य अंतरिक्ष के लिए पर्याप्त नहीं कहे जा सकते।
 
महिलाओं को कैंसर का ख़तरा अधिक : जर्मनी की अंतरिक्ष एजेंसी DLR के टोमास बेर्गर का यह भी कहना है कि विकिरण के कारण पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कैंसर होने का ख़तरा अधिक होता है– ख़ासकर स्तन कैंसर का। इस बीच ऐसी कई महिला अंतरिक्षयात्री भी तैयार बैठी हैं, जो खुले अंतरिक्ष में जाना चाहती हैं। इसीलिए हम स्त्री-रूपी दो पुतले भेज रहे हैं। इन पुतलों में महिलाओं के शरीर में विकिरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण 38 अंगों के प्रतिरूप हैं। इन अंगों में 1400 ऐसे बिंदु हैं, जो रेडियोधर्मी विकिरण की पहचान करेंगे। चंद्रयात्रा से वापसी के बाद इन बिंदुओं की सहायता से विकिरण प्रभावित अंगों और पूरे शरीर को त्रिआयामी बना कर देखा-समझा जायेगा। बैटरी से चलने वाले दोनों पुतले हर पांच मिनट पर विकरण डेटा जमा करेंगे।
 
ब्रह्मांडीय विकिरण क्या है : अंतरिक्ष में रेडियोधर्मी विकिरण कुछ तो सूर्य द्वारा उछाले गए अत्यंत सूक्ष्म परमाणुओं के रूप में होता है और कुछ सौरमंडल से बाहर, ब्रह्मांड की गहराइयों से आता है। नासा के अनुसार, ब्रह्मांड से आने वाला विकिरण लगभग प्रकाश जितने गतिमान ऐसे परमाणुओं के रूप में होता है, जिनके नाभिक में प्रोटॉन-न्यूट्रॉन तो होते हैं, पर इलेक्ट्रॉन नहीं रहता। वे इतने ऊर्जावान अयन होते हैं कि अपने सामने पड़ने वाली हर चीज़ के परमाणुओं में से उनके इलेक्ट्रॉनों को ठोकर मार कर बाहर करते हुए इन परमाणुओं का भी अयनीकरण कर देते हैं। 
 
वे हाइड्रोजन से लेकर लोहे और यूरेनियम तक सभी प्रकार के तत्वों के अयन हो सकते हैं। इतने सूक्ष्म और ऊर्जा से भरे होते हैं कि हमारे शरीर के आर-पार जा सकते हैं और अपने रास्ते में पड़ने वाले DNA, ऊतकों और कोषिकाओं को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं। इसीलिए सौर और ब्रह्मांडीय विकिरण के दीर्घकालिक प्रभावों का पूर्वानुमान बहुत कठिन है। इतना तय है कि सौर और ब्रह्मांडीय विकिरिण से कैंसर होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
 
चंद्रमा और मंगल पर हर समय विकिरण : आर्तेमिस-1 के ओरॉयन अंतरिक्षयान की सीटों पर बिठाए जाने वाले पुतलों के माध्यम से विकिरण संबंधी नए तथ्य और आंकड़े जुटाना समय की मांग बन गई है। इस बीच नासा व एसा जैसी आधिकारिक एजेंसिंयां ही नहीं, व्यावसायिक कंपनियां भी जल्द ही धनीमानी यात्रियों या अपने कर्मियों को चंद्रमा और मंगल पर भेजने की योजनाएं बना रही हैं।
 
चंद्रमा और मंगल ग्रह दोनों के पास, वैसा कोई घना वायुमंडल और चुंबकीय बलक्षेत्र नहीं है, जैसा हमारी पृथ्वी के पास है। पृथ्वी पर का वायुमंडल और उसका चुंबकीय बलक्षेत्र, सूर्य से या ब्रह्मांड की गहराइयों से आ रहे घातक विकिरण से हमारी रक्षा करता है। अंतरिक्ष से आने वाला हर विकिरण मनुष्य के स्वास्थ्य के लिेए उसी तरह ख़तरनाक है, जिस तरह किसी परमाणु बम के विस्फोट से फैलने वाला रेडियोधर्मी विकिरण ख़तरनाक होता है। हर प्रकार के विकिरण से कैंसर होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। 
 
'क्रैश टेस्ट' तय करेगा आर्तेमिस का भविष्य : 'ओरॉयन' की चौथी सीट पर रखे जाने वाले डमी से जुड़ा 'क्रैश टेस्ट' सबसे अंत में होगा। पृथ्वी पर वापसी के समय 'ओरॉयन' जब पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करेगा, तब हवा के साथ उसका जो टकराव और घर्षण होगा, वह नासा द्वारा आयोजित अब तक की सभी समान अंतरिक्षयात्राओं की अपेक्षा कहीं अधिक ज़ोरदार होगा।
 
'ओरॉयन' 40,000 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से, यानी ध्वनि की गति से भी 32 गुना अधिक तेज़ गति (माख़32) के साथ वायुमंडल से टकराएगा। इस गति पर हवा के साथ घर्षण से 'ओरॉयन' की पेंदी वाला निचला भाग, अतीत के स्पेस शटल यानों से भी कहीं अधिक गरम हो जाएगा। नासा के इंजीनियर और वैज्ञानिक वापसी के इन क्षणों को बहुत ही नाज़ुक मानते हैं। यदि कहीं कुछ भी चूक हुई, तो 'ओरॉयन' जल कर भस्म हो जाएगा। अरबों डॉलर कुछ ही क्षणों में स्वाहा हो जाएंगे। चंद्रमा पर लौटने और वहां रहने के सपने एक लंबे समय के लिए बिखर जाएंगे।
    
लक्ष्य है भावी उड़ानों के लिए डेटा संग्रह : पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की औसत दूरी 3,84,400 किलोमीटर है। चंद्रमा के पास पहुंचने के बाद अंतरिक्षयान 'ओरॉयन' एक दीर्घवृत्ताकार कक्षा में रह कर चंद्रमा की कई दिनों तक परिक्रमा करेगा। परिक्रमा के दौरान चंद्रमा से उसकी निकटतम दूरी 100 किलोमीटर और अधिकतम दूरी 6000 किलोमीटर होगी। उसमें कोई यात्री नहीं होगा, इसलिए वह चंद्रमा पर उतरेगा नहीं। इस पहली उड़ान का केवल एक ही लक्ष्य है भावी उड़ानों के लिए खूब डेटा और जानकारियां जमा करना। ख़राब मौसम या किसी अन्य कारण से आर्तेमिस-1 का प्रक्षेपण 29 अगस्त को यदि नहीं हो सका, तो 2 और 5 सितंबर अगली दो तारीखें होंगी। 
 
आर्तेमिस से पहले चंद्रमा पर पहुंचने के अपोलो अभियान के अंतर्गत, 21 दिसंबर 1968 से 18 दिसंबर 1972 के बीच, कुल 11 उड़ानों में 24 अमेरिकी अंतरिक्षयात्री चंद्रमा तक गए थे। 12 को चंद्रमा पर उतरने और उस पर चलने-फिरने का सौभाग्य भी मिला था।

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