आइनश्टाइन का वैज्ञानिक ही नहीं, मानवीय पक्ष भी रंगीला है

राम यादव
Albert Einstein inventions: हमारे युग के सबसे नामी वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनश्टाइन का जन्म, 14 मार्च 1879 को दोपहर 11:30 बजे, जर्मनी में उल्म शहर के एक यहूदी परिवार में हुआ था। माता-पिता धार्मिक वृत्ति के नहीं थे। न तो वे सिनागोग कहलाने वाले यहूदी पूजाघरों में जाते थे और न खान-पान के यहूदी नियमों का पालन करते थे। वर्तमान जर्मनी के जिस बाडेन-व्यु्र्टेम्बेर्ग राज्य में उल्म पड़ता है, डेढ़ सदी पूर्व वह उस समय के जर्मन साम्राज्य की व्यु्र्टेम्बेर्ग राजशाही का एक शहर हुआ करता था। 
 
माता-पिता ने बालक अल्बर्ट और उनकी छोटी बहन माया को बड़े उदार ढंग से पालापोसा था। जब वे चार साल के थे, तब उनके पिता ने एक दिन उपहर के तौर पर उन्हें एक कम्पास (दिशासूचक) दिया। उसकी सुई अपने आप बार-बार जिस तरह सही दिशा में घूम जाती थी, उसे देखकर वे बहुत चकित होते थे। संभवतः यहीं से उनके मन में वह खोजी जिज्ञासा जागी, जिसने अंततः उन्हें भौतिकी का सबसे महान वैज्ञानिक बना दिया।
 
एक साल बाद, 1880 से आइनश्टाइन का परिवार म्यूनिक में रहने लगा। बचपन वहीं बीता। 5 साल की आयु से प्रथमिक स्कूल जाने लगे। शुरू-शुरू में बहुत गुम-सुम रहते थे। शिक्षकों ने माता-पिता से शिकायत की कि उनके बेटे का बौद्धिक और सामाजिक विकास बहुत धीमा है। लेकिन, 4 साल बाद जब हाई स्कूल जाने लगे, तो सारा रंग-ढंग ही बदल गया।
 
बौद्धिक प्रतिभा जाग गई : हाई स्कूल पहुंचते ही तब तक सुप्त रही बौद्धिक प्रतिभा एकदम से जाग गई। गणित, विज्ञान और लैटिन भाषा में सबसे अच्छे अंक मिलने लगे। 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' वाली कहावत चरितार्थ होने लगी। भाषाएं छोड़कर हर विषय के, विशेषकर विज्ञान की किताबें पढ़-पढ़ कर स्कूली दिनों में ही सामान्य विज्ञान के अच्छे ज्ञाता बन गए। हाई स्कूल की अंतिम परीक्षा से कुछ पहले ही, माता-पिता म्यूनिक छोड़ कर इटली के मिलान शहर में बस गए। जर्मनी में यहूदियों के साथ बढ़ता हुआ भेदभाव उन्हें असह्य लगने लगा था।  
 
मैट्रिक की परीक्षा तक अल्बर्ट म्यूनिक में ही रहना चाहते थे, पर स्कूल में वातावरण ऐसा था कि बहुत जल्द ही उन्हें भी माता-पिता के पास इटली में मिलान जाना पड़ा। तब वे 15 साल के थे। म्यूनिक में उनका वर्ग शिक्षक उनसे कहता था कि वे निकम्मे हैं। उनकी उपस्थिति मात्र से उसकी 'तबीयत ख़राब होने लगती है'। मैट्रिक की परीक्षा उन्होंने 16 साल की आयु में, 1896 में स्विट्ज़रलैंड के एक स्कूल में दी। फ्रेंच भाषा के अलावा बाक़ी सभी विषयों में अधिकतम अंको के साथ पास हुए।
गणित अमूर्त विषय लगता था : मैट्रिक के बाद उसी साल, स्विट्ज़रलैंड में ही ज्यूरिच के पॉलीटेक्निकल कॉलेज में आगे की पढ़ाई शुरू करदी। रटने के बदले वे दिमाग लगाने और विषय की गहराई में जाने के कायल थे। अपने प्रोफ़ेसरों से अक्सर उलझ जाते थे। विश्वास करना कठिन है, पर गणित उन्हें एक दूभर अमूर्त विषय लगता था। भौतिकी (फ़िज़िक्स) उनका प्रिय विषय था। गणित को वे भौतिकी की राह का रोड़ा समझते थे। प्रोफ़ेसरों के व्याख्यानों के समय प्रायः ग़ायब रहते थे। साथी छात्रों के संलेखों से काम चलाते थे। तब भी, काफ़ी अच्छे अंकों के साथ 1900 में पढ़ाई पूरी कर ली। गणित से अरुचि होते हुए भी, बाद में उन्होंने जो अपूर्व खोजें कीं, उनके लिए गणित के सूत्रों और समीकरणों का भरपूर उपयोग किया।   
 
कॉलेज वाले दिनों में 17 साल का होते ही, युवा अल्बर्ट आइनश्टाइन ने जर्मन नागरिकता त्याग दी। जर्मन सेना में अनिवार्य सेवा देने से वे बचना और किसी देश की नागरिकता से मुक्त रह कर एक 'विश्व-नागरिक' कहलाना चाहते थे। 5 साल तक नागरिकता-विहीन रह कर, सदा एक तटस्थ देश रहे स्विट्ज़रलैंड के 1901 में नागरिक बन गए।  
 
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद आइनश्टाइन क़रीब 5 साल तक बेरोज़गार भी रहे। केवल एक बात मनभावन रहीः 6 जनवरी 1903 के दिन विवाह। आइनश्टइन की पहली पत्नी मिलेवा मारिच सर्बिया की थीं। दोनों स्विट्ज़रलैंड में अपनी पढ़ाई के दिनों में एक-दूसरे से परिचित हुए थे। पॉलीटेक्निकल कॉलेज में मिलेवा मारिच एकमात्र महिला छात्रा थीं। दोनों के दो पुत्र हुए, हांस अल्बर्ट और एदुआर्द। शादी से पहले की दोनों की एक साझी बेटी भी थी– लीज़रिल। उसके बारे में दोनों ने चुप्पी साध रखी थी, इसलिए इससे अधिक कुछ भी ज्ञात नहीं है। यह विवाह लेकिन 1919 में टूट गया। 
  
1905 उपलब्धियों का वर्ष : अल्बर्ट आइनश्टाइन को विज्ञान की दुनिया का केवल 20वीं सदी का ही नहीं, बल्कि अब तक के सारे इतिहास का एक सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है। 1905 उनकी कई बड़ी उपलब्धियों की एकसाथ झड़ी का स्वर्णिम वर्ष था। उसी वर्ष उनके सर्वप्रसिद्ध सूत्र E=mc² (ऊर्जा = द्रव्यमान X प्रकाशगति घाते 2) का जन्म हुआ था। 'सैद्धांतिक भौतिकी, विशेषकर प्रकाश के वैद्युतिक (इलेक्ट्रिकल) प्रभाव के नियमों' संबंधी उनकी खोज उसी वर्ष 17 मार्च के दिन प्रकाशित हुई थी। वर्ष 1921 का नोबेल पुरस्कार उन्हें इसी खोज के लिए, 9 नवंबर 1922 के दिन मिला था। यह खोज उन्होंने स्विट्ज़रलैंड की राजधानी बेर्न के पेटेंट कार्यालय में एक प्रौद्योगिक-सहायक के तौर पर 1905 में ही की थी। 
 
1905 वाले उसी वर्ष 30 जून को 'गतिशील पिंडों की वैद्युतिक गत्यात्मकता' शीर्षक वाला आइनश्टाइन का एक अध्ययन भी प्रकाशित हुआ था। ड़ॉक्टर की उपाधि पाने के लिए उसी वर्ष 20 जुलाई के दिन उन्होंने 'आणविक आयाम का एक नया निर्धारण' नाम से अपना शोधप्रबंध (थीसिस) ज्यूरिच विश्वविद्यालय को दिया था। उस समय उनकी आयु 26 वर्ष थी। 15 जनवरी, 1906 को उन्हें ड़ॉक्टर की उपाधि मिल भी गई।  
सापेक्षता सिद्धांत : आइनश्टाइन के नाम को जिस चीज़ ने अमर बना दिया, वह था उनका सापेक्षता सिद्धांत (रिलेटिविटी थिअरी)। उन्होंने गति के स्वरूप का अध्ययन किया और कहा कि गति एक सापेक्ष अवस्था है। ब्रह्मांड में ऐसा कोई स्थिर प्रमाण नहीं है, जिसके द्वारा मनुष्य पृथ्वी की 'निरपेक्ष गति' या किसी प्रणाली का निश्चय कर सके। गति का अनुमान हमेशा किसी दूसरी वस्तु को संदर्भ बनाकर उसकी अपेक्षा स्थिति-परिवर्तन की मात्रा के आधार पर ही लगाया जा सकता है। 1907 में प्रतिपादित उनके इस सिद्धांत को 'सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत' कहा जाता है। 
 
आइनश्टाइन का कहना था कि सापेक्षता के इस विशिष्ट सिद्धांत को प्रकाशित करने के बाद एक दिन उनके दिमाग़ में एक नया ज्ञानप्रकाश चमकाः 'मैं (स्विट्ज़रलैंड की राजधानी) बेर्न के पेटेंट कार्यालय में आरामकुर्सी पर बैठा हुआ था। तभी मेरे दिमाग़ में एक विचार कौंधाः यदि कोई व्यक्ति बिना किसी अवरोध के ऊपर से नीचे गिर रहा हो, तो वह अपने आप को भारहीन अनुभव करेगा। मैं भौचक्का रह गया! इस साधारण-से विचार ने मुझे झकझोर दिया। वह मुझे उसी समय से गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की ओर धकेलने लगा।' 
 
गुरत्वाकर्षण प्रभाव : वर्षों के गहन चिंतन-मनन और गणितिय समीकरणों के आधार पर, 1916 में आइनश्टाइन ने कहा कि ब्रह्माण्ड में किसी वस्तु को खी़ंचने वाले गुरुत्वाकर्षण प्रभाव का असली कारण यह है कि हर वस्तु अपने द्रव्यमान (सरल भाषा में भार) और आकार के अनुसार अपने आस-पास के दिक्-काल (स्पेस-टाइम) में मरोड़ पैदा करती है। वैसे तो हर वस्तु और हर वस्तु की गति, दिक्-काल में यह बदलाव लाती है। किंतु बड़ी व भारी वस्तुएं तथा प्रकाश की गति के निकट पहुंचती गतियां कहीं बड़े बदलाव पैदा करती हैं। 
 
आइनश्टइन ने सामान्य सापेक्षता के अपने इस क्रांतिकारी सिद्धांत में दिखाया कि वास्तव में दिक् के तीन और काल का एक आयाम मिलाकर ब्रह्माण्ड में चार आयामों वाला दिक्-काल है। सारी वस्तुएं और सारी उर्जाएं उसी में अवस्थित हैं। यह दिक्-काल स्थाई नहीं है– न तो दिक् बिना किसी बदलाव के रह पाता है और न यह ज़रूरी है कि समय का प्रवाह हर वस्तु के लिए एक जैसा हो। दिक्-काल को प्रभावित कर के उसे मरोड़ा, खींचा और सिकोड़ा भी जा सकता है। ब्रह्माण्ड में ऐसा निरंतर होता रहता है।
 
भौतिकी के प्रोफ़ेसर बने : 1907 से 1914 के बीच अल्बर्ट आइनश्टइन ज्यूरिच और प्राग के विश्वविद्यलयों में भौतिकी के प्रोफ़ेसर रहे। अपने समय के एक दूसरे महान वैज्ञानिक माक्स प्लांक के अनुरोध पर 1914 में वे बर्लिन पहुंचे। उन्हें बर्लिन विश्वविद्यालय में छात्रों को पढ़ाना था, पर व्यवहारतः उन्हें ऐसा कोई कार्यभार दिया ही नहीं गया था, इसलिए वे अपने 'सामान्य सापेक्षता सिद्धांत' पर आगे काम करने में जुटे रहे। अक्टूबर 1917 में उन्हें बर्लिन में भौतिकी के तत्कालीन 'सम्राट विलहेल्म संस्थान' का निदेशक बना दिया गया। 1933 तक वे इसी पद पर रहे। 
 
इस बीच 1919 के आरंभ में अपनी पहली पत्नी मिलेवा से संबंध-विच्छेद हो जाने के बाद उसी वर्ष जून में उन्होंने अपनी चचेरी-मौसेरी बहन एल्ज़ा से दूसरा विवाह किया। यह एक अजीब रिश्ता था। एल्ज़ा के पिता, आइनश्टइन के पिता के भाई थे और एल्ज़ा की मां, आइनश्टइन की मां की बहन थी। एल्ज़ा की पहले से ही दो बेटियां थीं। दूसरी ओर, अपनी खोजों के कारण आइनश्टइन इतने प्रसिद्ध भी हो गए थे कि देश-विदेश से उन्हें यात्रा के ढेर सारे निमंत्रण मिलने लगे थे। ऐसे ही एक निमंत्रण पर 1921 में वे पहली बार अमेरिका गए। वहां के प्रिंस्टन विश्वविद्यालय ने डॉक्टर की मानद उपाधि से उन्हें विभूषित किया। 
 
हिटलर की तानाशाही : दिसंबर,1932 में आइनश्टइन एक बार फिर अमेरिका गए। वहीं उन्हें ख़बर मिली कि 30 जनवरी, 1933 के दिन हिटलर ने जर्मनी में सत्ता हथियाली है। घोर फ़ासिस्ट विचारधारा वाले हिटलर के जर्मनी में वे कतई नहीं लौटना चाहते थे। उसी साल मार्च में वे यूरोप लौटे, पर बर्लिन के बदले बेल्जियम गए। बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में स्थित जर्मन दूतावास में जाकर अपना जर्मन पासपोर्ट लौटा दिया।   
 
जनवरी, 1933 में सत्ता हथियाने के साथ ही जर्मनी पर हिटलर की निर्मम तानाशाही शुरू हो गई। 10 मई, 1933 को उसके प्रचारमंत्री योज़ेफ़ गोएबेल्स ने हर प्रकार के यहूदी साहित्य की सार्वजनिक होली जलाने का अभियान छेड़ दिया। आइनश्टाइन की लिखी पुस्तकों की भी होली जली। 'जर्मन राष्ट्र के शत्रुओं' की एक सूची बनी, जिसमें उस व्यक्ति को 5 हज़ार डॉलर का पुरस्कार देने की घोषणा की गई, जो आइनश्टइन की हत्या कर देगा।
 
आइनश्टाइन तब तक अमेरिका के प्रिन्स्टन शहर में बस गए थे। गुरुत्वाकर्षण वाले अपने सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के नियमों तथा विद्युत-चुम्बकत्व के नियमों के बीच मेल बैठाते हुए एक 'समग्र क्षेत्र सिद्धांत' (यूनिफ़ाइड फ़ील्ड थिअरी) का प्रतिपादन करने में जुटे हुए थे। इसके लिए वे किसी 'ब्रह्मसूत्र' जैसे एक ऐसे गणितीय समीकरण पर पहुंचना चाहते थे, जो दोनों को– यानी सामान्य सापेक्षता के और विद्युत-चुम्बकत्व के नियमों को– एक सूत्र में पिरोते हुए ब्रहमांड की सभी शक्तियों और अवस्थाओं की व्याख्या करने का मूलाधार बन सके। वे मृत्युपर्यंत इस पर काम करते रहे, पर न तो उन्हें सफलता मिल पायी और न आज तक कोई दूसरा वैज्ञानिक यह काम कर पाया है। 
 
अगली कड़ी में पढ़ें : आइनश्टाइन की वह गलती जिसका उन्हें हमेशा मलाल रहा
 

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