तीस जून को खत्म हो जाएगा इंटरनेट..!

विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी तीस जून को इंटरनेट खत्म हो सकता है क्योंकि उस दिन अतिरिक्त सेकंड की गणना से कम्प्यूटरों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हो सकती है।
 
तीस जून को 23 बजकर 59 मिनट और 59 सेकंड पर दुनिया की घडि़यों को एक अतिरिक्त सेकंड को जोड़ना होगा। इस कारण से पृथ्वी के समय (अर्थ टाइम) और एटोमिक टाइम (परमाणु समय) में गड़बड़ी हो सकती है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इससे इंटरनेट को पॉवर देने वाले सिस्टम्स में बड़े पैमाने पर विध्वंस हो सकता है। इसके चलते कुछ सिस्टम्स जहां क्रैश हो सकते हैं तो अन्य दूसरों में अतिरिक्त सेकंड नहीं जुड़ पाएगा। 
 
मेल ऑनलाइन के लिए एली जोफागारीफार्ड और जोनाथन ओ कैलाघन लिखते हैं कि तीस जून को 23 घंटे, 59 मिनट और 59 सेकंड पर दुनिया की घडि़यों को एक अतिरिक्त सेकंड जोड़ना होगा। इस कारण से वर्ष 2015 में कुल सेकंडों की संख्‍या 31,536,001 हो जाएगी।
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वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के घूर्णन (रोटेशन) में होने वाली कमी को पूरा करने के लिए एक लीप सेकंड का जुड़ना बहुत महत्वपूर्ण होगा। लेकिन कुछ  कम्प्यूटर विशेषज्ञों का कहना है कि इस अतिरिक्त समय या सेकंड से इंटरनेट को पॉवर देने वाले सिस्टम्स में भारी गड़बड़ी हो सकती है।
 
यह अतिरिक्त सेकंड इसलिए भी जरूरी है क्योंकि प्रतिदिन में पृथ्वी का रोटेशन एक सेकंड के दो हजारवें भाग तक धीमे हो रहा है। साथ ही, इसे परमाणु समय से भी मिलान करना है।
 
विदित हो कि परमाणु समय के मापन के लिए परमाणुओं में वाइब्रेशन्स (कंपन) का उपयोग किया जाता है और इसे सबसे अधिक विश्वसनीय भी माना जाता है क्योंकि परमाणु बहुत अधिक सटीक बारम्बारता पर गूंजते हैं। 
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हालांकि 30 जून को प्रत्येक को लीप सेकंड को एक ही समय पर या एक ही तरीके से नहीं जोड़ना है। कुछ सिस्टम्स में कम्प्यूटर घड़ी में अगला मिनट बताने की बजाय 60 सेकंड ही दर्शाएं या फिर 59वें सेकंड को दो बार बताया जाए। इसके परिणामस्वरूप कम्प्यूटर एक लीप सेकंड को समय का पीछे की ओर जाने को बताए जिससे सिस्टम एरर पैदा हो सकती है और सीपीयू ओवरलोड हो सकता है।
 
क्रैश न होने वाले कम्प्यूटरों में जो प्रक्रियाएं सटीक समय पर होती हैं, जैसेकि एक मिक्स में एक केमिकल को मिलाने में वाल्व खुलने में लगने वाली समय की मात्रा, करीब आधा सेकंड देरी से होंगी। पर कुछ कम्प्यूटर विशेषज्ञों की भविष्यणाणी है कि यह देखना बाकी है कि क्या इससे बड़े पैमाने पर समस्याएं पैदा होती हैं।  
 
अक्सर ही लीप सेकंड्‍स का उपयोग पृथ्वी के समय (अर्थ टाइम) को परमाणु समय (एटोमिक टाइम) के बराबर लाने में किया जाता है क्योंकि पृथ्वी का समय प्रतिदिन एक सैकंड के दो हजारवें भाग धीमा हो जाता है। इसलिए दोनों तरह के समयों को बराबर बनाए रखने के लिए जरूरी है ताकि गणितीय गणनाओं में अंतर ना आए। पृथ्वी का समय जब करीब आधा सेकंड धीमा हो जाता है तो इसे करीब आधा सेकंड तेज कर दिया जाता है। 
तब 23 घंटे के होते थे दिन और रात... पढ़ें अगले पेज पर....

नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वैज्ञानिक डैनियल मैकमिलन का कहना है कि जब पृथ्वी पर डॉइनोसॉर्स थे तब पृथ्वी अपना एक चक्कर करीब 23 घंटों में पूरा कर लेती थी, लेकिन वर्ष 1820 में इसका एक चक्कर पूरा होने में बिल्कुल 24 घंटे या 86 हजार 400 स्टेंडर्ड सेकंड्‍स लगे। इसका एक अर्थ यह भी है कि तब से एक सौर दिवस (सोलार डे) में करीब 2.5 मिलीसेकंड्‍स की बढ़ोतरी है। 1972 से इस वर्ष 26वां अवसर होगा जबकि समय में एक लीप सेकंड को जोड़ा जाएगा। 
 
विशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 2012 में ऐसी ही समस्याओं का सामना करना पड़ा था जब समय के बदलने से सब सिस्टम्स भ्रमित हो गए थे और कुछ सर्वर्स पर ‍अतिसक्रियता (हाइपरएक्टिविटी) देखी गई थी। बहुत सारी कंपनियों, जिनमें रेडिट, येल्प और लिंक्टडइन शामिल थीं, के सिस्टम्स क्रैश हो गए थे क्योंकि वे इसी समस्या से जूझते दिखे थे।
यह हो सकता है इससे बचने का उपाय... पढ़ें अगले पेज पर....

जब परमाणु घड़ियों में प्रतिदिन के 86,400 सेकंड्‍स को मापा जाता है तब पृथ्वी के घूमने की गति करीब 0.002 सेकंड धीमी होती है। यह अंतर परमाणु समय और पृथ्वी की गणितीय तौर पर अनुमानित जन्म दिनांक के बीच अंतर आने से पैदा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि करीब 4‍ बिलियन वर्ष पहले इस ग्रह पर एक दिन मात्र 22 घंटों का हुआ था। इसके अलावा चंद्रमा के ज्वार से होने वाले खिंचाव में कमी होने के पृथ्वी की घूमने की गति में थोड़ी कमी आई है।
 
इस बार टेक कंपनियों का कहना है कि वे ऐसी किसी जरूरत के लिए तैयार हैं। गूगल जैसी कंपनियां पिछले वर्ष में सेकंड का कुछ हिस्सा जोड़ देती हैं ताकि उन्हें एकाएक समय बढ़ाने की जरूरत ही नहीं पड़े।
 
गूगल के रिलाइबिलिटी इंजीनियरों, नोआह मैक्सवेल और माइकेल रॉथवेल का कहना है कि लीप सेकंड्‍स से निपटने के लिए सीधा सा तरीका है। हम एक सेकंड को दोहराने की बजाय अतिरिक्त सेकंड को ही साफ कर देते हैं। लेकिन ब्रिटेन जैसे देश इस व्यवस्था को बनाए रखने के पक्ष में हैं क्योंकि वर्ष 2100 तक हमें दो से लेकर तीन मिनटों को घटाना होगा और वर्ष 2700 तक यह समय आधा घंटे तक हो जाएगा। इस सेकंड्‍स को लेकर इस वर्ष के अंत में रेडियोकम्युनिकेशन असेम्बली और द वर्ल्ड रेडियोकम्युनिकेशन कॉन्फ्रेंस में विचार किया जाएगा कि इन सेकंड्‍स का क्या किया जाए?   

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