अमेरिका ने दावा किया कि उसने इजराइल और ईरान के बीच सीजफायर करवा दिया। ट्रंप के इस दावे के बाद भी दोनों देशों के एक-दूसरे पर हमले जारी रहे। इस बीच करीब 12 दिन की इस जंग में किस देश को कितना नुकसान हुआ। ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम रोकेगा। ऐसे कई सवाल हैं। इजराइली हमलों में ईरान के नुकसान का यदि आकलन किया तो सबसे बड़ी क्षति उसके कम से कम 14 परमाणु वैज्ञानिकों का मारा जाना है जिनकी निगरानी ईरान का परमाणु कार्यक्रम आगे बढ़ा रहा था।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह हमला भले ही ईरान को पीछे धकेल सकता है किंतु उसे रोक नहीं पाएगा। फ्रांस में इजराइल के राजदूत जोशुआ जर्का ने एसोसिएटेड प्रेस से कहा कि वैज्ञानिकों की मौत और इजराइली व अमेरिकी हमलों में बचे परमाणु ढांचों और सामग्रियों से ईरान के लिए हथियार बनाना लगभग असंभव होगा। उन्होंने कहा कि पूरे समूह के खात्मे के कारण ईरान का परमाणु कार्यक्रम कुछ वर्ष नहीं काफी वर्ष के लिए टल गया है।
दूसरे वैज्ञानिक ले सकते हैं जगह
हालांकि परमाणु विश्लेषकों का यह भी कहना है कि ईरान के पास अन्य वैज्ञानिक हैं जो उनकी जगह ले सकते हैं। यूरोपीय देशों की सरकारों का कहना है कि मात्र सैन्य बल से ईरान की परमाणु प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति को खत्म नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि वे ईरानी कार्यक्रम के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए बातचीत के जरिए समाधान चाहते हैं।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी ने हाउस ऑफ कॉमन्स में सांसदों से कहा कि हमले ईरान द्वारा कई दशकों में अर्जित प्रौद्योगिकी जानकारी को नष्ट नहीं कर सकते, न ही उस प्रौद्योगिकी जानकारी का उपयोग करके परमाणु हथियार बनाने की किसी सरकार की महत्वाकांक्षा को नष्ट किया जा सकता है। वैज्ञानिकों की मौत पर नजर डालें तो इनमें रसायनशास्त्री, भौतिकशास्त्री, इंजीनियर शामिल हैं।
जर्का ने एपी को बताया कि इजराइली हमलों में कम से कम 14 भौतिकविदों और परमाणु इंजीनियरों की मौत हुई है। उन्होंने कहा कि मारे गये लोग ईरान के शीर्ष वैज्ञानिक थे और उसके परमाणु कार्यक्रम के पीछे उनका ही दिमाग था।
अमेरिकी विशेषज्ञ एवं पूर्व राजनयिक मार्क फिट्जपैट्रिक ने कहा कि परमाणु कार्यक्रम की रूपरेखा तो आसपास मौजूद ही रहेगी तथा पीएचडी करने वालों की नयी पौध इसका उपयोग करने में सक्षम हो जाएगी। उन्होंने कहा कि परमाणु केंद्रों पर बमबारी करना या कुछ लोगों को मारने से इस परमाणु कार्यक्रम को कुछ समय के लिए पीछे धकेल दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि दोनों काम एक साथ किए जाते हैं तो यह कुछ और पीछे चला जाएगा, लेकिन इस कार्यक्रम को फिर से खड़ा कर लिया जाएगा। मार्क ने कहा कि उनके पास शायद अगले स्तर पर विकल्प हैं। हालांकि वे उतने योग्य नहीं हैं लेकिन वे अंततः काम पूरा कर लेंगे।
पश्चिम एशिया में रूस के प्रभाव पर सवाल
जब इस सप्ताहांत अमेरिका ने इजराइल के साथ मिलकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, तो रूस ने भी इसकी निंदा की। संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत ने कहा कि वाशिंगटन "भानुमति का पिटारा" खोल रहा है, और तेहरान के शीर्ष राजनयिक राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से समर्थन मांगने के लिए क्रेमलिन पहुंचे।
मगर सोमवार को ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरागची के साथ अपनी बैठक में पुतिन ने हमलों की निंदा करते हुए इसे “बिना किसी आधार या औचित्य के अकारण किया गया हमला” बताया।
विश्लेषकों का कहना है कि बिना किसी प्रत्यक्ष सैन्य सहायता के जबानी प्रतिक्रिया से ईरान को निराशा हो सकती है और यह पश्चिम एशिया में रूस के घटते प्रभाव को दर्शाता है, जहां वह सीरिया में बशर अल असद की सत्ता जाने के बाद एक महत्वपूर्ण सहयोगी खो चुका है और एक नाजुक कूटनीतिक संतुलन की कोशिश कर रहा है।
इसके बजाय मास्को ईरान-इजराइल युद्ध से कुछ अल्पकालिक लाभ प्राप्त कर सकता है, जैसे कि तेल की कीमतों में वृद्धि, जिससे रूस की डूबती अर्थव्यवस्था को मदद मिले या यूक्रेन में तीन साल से जारी युद्ध से विश्व का ध्यान हटाना।
जनवरी 2025 में रूस और ईरान ने आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए। थिंकटैंक चैथम हाउस में पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका कार्यक्रम के वरिष्ठ अनुसंधान फेलो रेनाद मंसूर ने कहा कि सीरिया में असद को हटाने और हिजबुल्ला के कमजोर होने के बीच क्षेत्रीय सहयोगियों को खोने के बाद यह समझौता किया गया। उन्होंने कहा कि ईरान रूस पर निर्भर रहना चाहता था।
मंसूर ने कहा कि मुझे लगता है कि ईरान के दृष्टिकोण से, रूस द्वारा समर्थन देने की इच्छा को लेकर कुछ निराशा हुई है। उन्हें अब लग रहा है कि जब हम इजराइल और अमेरिका जैसे विशाल देश का सामना कर रहे हैं, तो रूस वास्तव में आगे नहीं आ रहा है।" क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने मंगलवार को इस दावे का खंडन किया कि मास्को ने तेहरान को सार्थक समर्थन नहीं दिया है।
रूस केवल ईरानी मांगों को ही संतुलित नहीं कर रहा है। रूस इजराइल के साथ भी अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है। दोनों देशों की सेनाएं सीरिया में सक्रिय हैं, और वे सीधे टकराव से बचने के लिए संपर्क बनाए रखने में सावधान रहे हैं। इजराइल यूक्रेन युद्ध के दौरान काफी हद तक तटस्थ रहा है, क्योंकि वह रूस को नाराज़ करने से बचना चाहता है- विशेष रूप से इसलिए कि रूस में यहूदी आबादी बड़ी संख्या में है।
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने मंगलवार को कहा कि मास्को संघर्ष को सुलझाने में मदद करने के लिए तैयार है, लेकिन मध्यस्थ की भूमिका नहीं निभाएगा। सीरिया में रूस की सैन्य मदद के बावजूद असद सरकार के गिरने की पृष्ठभूमि में मंसूर ने कहा कि आप लड़ाई हार सकते हैं, आप सहयोगी खो सकते हैं, लेकिन मुझे यकीन है कि रूस पश्चिम एशिया में अपना प्रभाव बनाए रखेगा, जिसमें सीरिया भी शामिल है, जहां वह पहले से ही नई सरकार के साथ बातचीत कर रहा है।” Edited by : Sudhir Sharma