भौतिकी का नोबेल पुरस्कार पाने वालों का काम किसी चमत्कार से कम नहीं

Nobel Prize for Physics : भौतिकी (फ़िज़िक्स) में अपूर्व खोज की दृष्टि से 2023 के नोबेल पुरस्कार के लिए जिन 3 वैज्ञानिकों को चुना गया है, उनकी उपलब्धि को समझना टेढ़ी खीर है। परमाणु के भीतर वे इलेक्ट्रॉन की सूक्ष्मतम हरकतों को दृश्यमान बनाने की युक्ति ढूंढने में लगे थे।
 
कोई परमाणु ख़ुद ही इतना सूक्ष्म होता है कि उसे देखने के लिए एक बहुत ही शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) चाहिए। प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के बने उसके नाभिक की परिक्रमा करने वाले इलेक्ट्रॉन को देख पाना और उसकी गति के समय को जान पाना तो और भी कल्पनातीत है। इन तीनों वैज्ञानिकों ने इसे संभव बनाया है। उनकी खोज भौतिकी या प्रमात्रा भौतिकी (क्वान्टम फ़िज़िक्स) के लिए ही नहीं, रासायनिक क्रियाओं और चिकित्सा विज्ञान के लिए भी बहुत ही उपयोगी मानी जा रही है। 
 
तीन देशों के तीन वैज्ञानिक : ये तीन वैज्ञानिक हैं, हंगरी में जन्मे पर जर्मनी में रह रहे फ़ेरेंस क्राउस, अमेरिका के पीएर अगोस्तीनी और फ्रांस की अन ल' उइयेर। फ़ेरेंस क्राउस जर्मनी के म्युनिक विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं और पास ही के गार्शिंग शहर में स्थित क्वान्टम ऑप्टिक्स के माक्स प्लांक संस्थान के निदेशक हैं। पीएर अगोस्तीनी अमेरिका की ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं, और फ्रांस की अन ल' उइयेर स्वीडन के लुंद विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं। 1901 में नोबेल पुस्कारों के आरंभ के बाद से अब तक भौतिकी के जिन कुल 217 वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया है, उनमें महिला वैज्ञानिकों के केवल 4 नाम हैं।  
 
इस बार के नोबेल पुरस्कार विजेता तीनों वैज्ञानिक भौतिकी की जिस शाखा में शोध कार्य कर रहे हैं, उसे हिंदी में 'अत्यंत क्षणिक भौतिकी' कहा जा सकता है। वे अत्यंत अल्प काल के लिए लेज़र किरण की चमक द्वारा किसी परमाणु में न्यूट्रॉन कणों की स्थिति जानने के प्रयोग करते रहे हैं। यह किसी कैमरे द्वारा कोई फ़ोटो लेने के उद्भासनकाल (एक्सपोज़र टाइम)  के समान है, पर इतने अकल्पनीय कम समय में, जिसे 'ऐटोसेकंड' नाम दिया गया है।
 
समय की एक नई इकाई : एक 'ऐटोसेकंड' वह समय है, जो 1 सेकंड के 1000वें भाग को यानी 1 मिलीसेकंड को हर बार 1000 से क्रमशः 5 बार तक विभाजित करते जाने पर मिलेगा। दूसरे शब्दों में, एक ऐटोसेकंड, 1 सेकंड के 1 अरबवें (1बिलियन वाले) भाग के भी 1 अरबवें भाग जितना छोटा होता है।
 
इस बार के पुरस्कार विजेता वैज्ञानिकों ने कर दिखाया है कि ऐटोसेकंड की लेजर किरण भी पैदा की जा सकती है और उसकी सहायता से किसी पदार्थ के परमाणु में घूम रहे इलेक्ट्रॉनों को देखा और ऐसी अतिक्षणिक प्रक्रियाओं को जाना-समझा जा सकता है, जिनमें इलेक्ट्रॉन गतिशील हैं या उनकी ऊर्जा बदल रही है। पुरस्कार की घोषणा वाले वक्तव्य में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनों की दुनिया में होने वाले परिवर्तन दस-एक ऐटोसेकंड में ही हो जाते हैं।
 
क्षणिक लेज़र किरणें : पुरस्कार विजेताओं के प्रयोगों से ऐसी लेज़र किरणें उत्पन्न हुईं, जो इतनी क्षणिक थीं कि उन्हें ऐटोसेकंड में ही मापा जा सकता है। उन्होंने दिखाया कि इन किरणों की मात्र ऐटोसंकंड लंबी चमक का उपयोग अणुओं-परमाणुओं में होने वाली प्रक्रियाओं की तस्वीर प्राप्त करने के लिए भी किया जा सकता है।
 
लुंद विश्वविद्यालय की अन ल' उइयेर ने पाया कि जब अवरक्त (इन्फ्रारेड) लेजर प्रकाश को किसी निष्क्रिय (इनर्ट) गैस से गुज़ारा जाता है, तब प्रकाश की कई अलग-अलग रंगतें उत्पन्न होती हैं। ये रंगतें गैस के परमाणुओं के साथ लेज़र प्रकाश की परस्पर क्रिया से पैदा होती हैं, जिससे कुछ इलेक्ट्रॉनों को ऐसी अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है, जो बाद में प्रकाश के रूप में उत्सर्जित होती है। अन ल' उइयेर ने इस घटना की तह में जाते हुए बाद की सफलताओं की नींव डाली। 
 
अत्यंत अल्पकालिक लेज़र प्रकाश : पीएर अगोस्तीनी ने अमेरिका की ओहायो यूनिवर्सिटी में ऐसे प्रयोग किए, जिनमें वे अत्यंत अल्पकालिक लेज़र प्रकाश की चमकों वाली एक कड़ी पैदा करने में सफल रहे। हर एकल चमक केवल 250 ऐटोसेकंड लंबी थी। उन्हीं दिनों, जर्मनी में फ़ेरेंस क्राउस भी अपनी प्रयोगशाला में एक ऐसे प्रयोग में व्यस्त थे, जिसमें वे लेज़र प्रकाश की हर बार 650 ऐटोसेकंड लंबी केवल एक चमक पाना चाहते थे, न कि कोई कड़ी।
 
इस प्रकार नोबेल पुस्कार पाने वाले तीनों वैज्ञानिक अपने-अपने ढंग से लेज़र प्रकाश की ऐसी अत्यंत अल्पकालिक चमक पैदा करना चाहते थे, जिसकी सहायता से वे अणुओं-परमाणुओं में होने वाली उन अकल्पनीय अतिशीघ्र प्रकियाओं को देख-माप सकते, जिनमें इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता या बदलती ऊर्जा की मुख्य भूमिका होती है। इन वैज्ञानिकों के कार्य ने ऐसी प्रक्रियाओं को जानना-समझना और उनकी तस्वीरें लेना संभव बना दिया है, जो इतनी तीव्रगति की हैं कि उन्हें अब तक देखा-समझा नहीं जा सका था।
 
रसायन और चिकित्सा विज्ञान को भी लाभ मिलेगा : भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेताओं के शोध कार्य से भौतिकी और क्वान्टम भौतिकी ही लाभान्वित नहीं होगी, रसायन शास्त्र (केमिस्ट्री) और चिकित्सा विज्ञान को भी लाभ मिलेगा। बुधवार, 4 अक्टूबर को घोषित रसायन शास्त्र के तीन नोबेल पुरस्कार विजेताओं के शोध कार्य का भी क्वान्टम भौतिकी से निकट का संबंध है। उन्होंने नैनो टेक्नॉलॉजी के अंतर्गत ऐसे क्वान्टम बिंदुओं की खोज और उनका विकास किया है, जो टेलीविज़न के या अन्य प्रकार के डिस्प्ले पर्दों, फ़ोटोवोल्टाइक पैनलों और क्वान्टम कंप्यूटरों के काम आते हैं।
 
रसायन शास्त्र के ये तीन पुरस्कार विजेता हैं फ्रांस में जन्मे और अमेरिका के मैसाच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी (MTI) में कार्यरत मोउनेगी बावेंदी, अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में कार्यरत लुइस ब्रस और अमेरिका की ही नैनोक्रिस्टल टेक्‍नोलॉजी नाम की कंपनी में कर्यरत रूसी मूल के अलेक्सेई एकिमोव।

इन वैज्ञानिकों ने 1980 और 1990 वाले दशक में नैनो तकनीक के आधारभूत सिद्धांतों की खोज की थी और इस तकनीक के भावी विकास का मार्ग प्रशस्त किया था। नैनो तकनीक का डिस्प्ले स्क्रीन और बिजली के LED बल्बों के अलावा कैंसर की चिकित्सा में भी उपयोग होता है। नैनो अतिसूक्ष्म लंबाई की एक इकाई है। 1 नैनो, एक मीटर के 1 अरबवें हिस्से के, यानी 1 nm X10 घाते –9 मीटर के बराबर होता है।  

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