स्विट्जरलैंड के जिनेवा में सबसे बड़े हीरे की 220.49 करोड़ रुपए में नीलामी हुई। इस हीरे की नीलामी ने एक नया इतिहास रचा है। यह हीरा 16वीं शताब्दी में भारतीय खान से निकाला गया था। 16वीं शताब्दी में भारत की एक खान से मिला यह हीरा दुनिया के सबसे खूबसूरत हीरे के रूप में शुमार है। इस हीरे ने नेपोलियन बोनापार्ट से लेकर कई बड़े राजाओं की शान को बढ़ाया है।
163.41 कैरेट के इस हल्के गुलाबी रंग के हीरे की चमक एशिया से लेकर यूरोप तक में रही है। यह हीरा 'द आर्ट ऑफ ग्रिसोगोनो' नाम के एक हीरों के हार में जड़ित था. क्रिस्टी की इस रत्न नीलामी में कर और कमीशन के बाद इसे 3.35 करोड़ स्विस फ्रैंक (स्विट्जरलैंड की मुद्रा) में बेचा गया है। क्रिस्टी के अंतरराष्ट्रीय रत्न विभाग के प्रमुख और नीलामीकर्ता राहुल कड़किया ने बताया, 'इसने एक नया विश्व कीर्तिमान रचा है। किसी नीलामी में 'डी' रंग का यह हीरा सबसे महंगा बिका है।
यह 'डी' रंग हीरा है। हीरे के रंगो का विभाजन 'डी' से शुरू होता है। डी रंग किसी हीरे का सबसे उन्नत रंग होता है, क्योंकि यह हीरे के मूल रंग को परिभाषित करता है। इसका मतलब वास्तव में रंगहीन होना होता है, क्योंकि हीरा पारदर्शी होता है। इसके बाद ई, एफ, जी इत्यादि की श्रेणी में रंगों का विभाजन होता है। इसमें हीरे का रंग धीरे-धीरे हल्का पीला होता जाता है।
ऐसा ही इतिहास : इसकी खासियत थी कि यह हीरा नेपोलियन बोनापार्ट समेत फ्रांस के तमाम राजाओं के ताज की शान बना। ले ग्रांड माजारिन ने वर्ष 1661 में फ्रांस के राजा लुई चौदह को भेंट किया गया। कंपनी क्रिस्टी यूरोप और एशिया के चैयरमैने फ्रांको कुरी के अनुसार यह हीरा सुंदरता की चिरकालीन निशानी है, जिसने फ्रांस के सात राजाओं और रानियों के शाही खजाने की शोभा बढ़ाई। इससे भी बड़ी बात यह है कि यह 350 साल तक यूरोपीय इतिहास का गवाह है। यह हीरा अपने आप में एक इतिहास है।
फ्रांस की क्रांति के बाद यह हीरा नेपोलियन प्रथम और नेपोलियन तृतीय के राजमुकुट का हिस्सा बना। 1870 में नेपोलियन तृतीय के पतन के बाद 1887 में यह हीरा पहली बार नीलाम हुआ था। अब 130 साल बाद यह फिर से नीलामी हुई है। यह हीरा दक्षिण भारत में हीरों के लिए मशहूर रही गोलाकुंडा की खदान से निकाला गया था। इस हीरे का नाम इटली के कार्डिनल और कूटनीतिक अधिकारी कार्डिनल मजारिन के नाम पर पड़ा। वह फ्रांसीसी राजाई लुई तेरह और लुई चौदह के चीफ मिनिस्टर थे।