भारतीय नौसेना में शामिल 'विक्रमादित्य'

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013 (19:12 IST)
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सेवेरोदविंस्क (उत्तर रूस)। लंबे समय से लंबित एवं प्रतीक्षित 2.3 अरब डॉलर का विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य शनिवार को यहां भारतीय नौसेना में शामिल हो जाएगा जिससे भारत की समुद्री क्षमताओं में इजाफा होगा।

शुक्रवार शाम यहां पहुंच रहे रक्षामंत्री एके एंटनी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य को रूसी प्रधानमंत्री दमित्रि रोगोजिन तथा दोनों देशों की सरकारों एवं नौसेना के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में नौसेना में शामिल करेंगे।

विमानवाहक पोत को रूस के परमाणु पनडुब्बी निर्माण केंद्र सेवमेश शिपयार्ड में भारतीय नौसेना में शामिल किया जाएगा। आईएनएस विक्रमादित्य कीव श्रेणी का विमानवाही पोत है जिसे वर्ष 1987 में बाकू नाम से रूसी नौसेना में शामिल किया गया था।

उसका नामकरण बाद में एडमिरल गोर्शकोव कर दिया गया था। भारत को इसकी पेशकश किए जाने से पहले इसने वर्ष 1995 में रूस में अपना आखिरी सफर किया था।

44,500 टन वजनी युद्धपोत की लंबाई 284 मीटर है और इस पर मिग-29.के नौसेना लड़ाकू विमान के साथ ही कामोव-31 और कामोव-28 पनडुब्बीरोधी और समुद्री निगरानी हेलीकॉप्टर तैनात रहेंगे।

मिग-29.के विमान भारतीय नौसेना की क्षमता में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी करेंगे, क्योंकि यह एक बार में 700 समुद्री मील तक उड़ान भर सकता है और हवा में ईंधन भरकर यह दायरा 1900 समुद्री मील हो जाएगा। इस पर विभिन्न तरह के हथियारों की तैनाती की जाएगी जिसमें पोतरोधी मिसाइल, दृश्य सीमा से परे हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और गाइडेड बम और रॉकेट शामिल हैं।

करीब 9 वर्ष की बातचीत के बाद पोत में पुराने पुर्जे हटाकर नए लगाने तथा 16 मिग-29, के:यूबी डेक आधारित लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए वर्ष 2004 में 1.5 अरब डॉलर का शुरुआती अनुबंध हुआ।

1998 में गतिरोध समाप्त करने के लिए रूस के तत्कालीन प्रधानमंत्री एवगेनी प्रिमाकोव की सरकार ने पोत को भारत को मुफ्त में देने की पेशकश की थी बशर्ते वह इसकी मरम्मत और आधुनिकीकरण का खर्चा दे दे।

यद्यपि कार्य के प्रारंभिक मूल्यांकन में जरूरी परिश्रम की कमी के चलते उसकी कीमत काफी बढ़ गई जिससे उसकी मरम्मत और आधुनिकीकरण का काम रुक गया।

पोत का सौदा द्विपक्षीय संबंधों में एक बड़ी अड़चन बन गया था। वर्ष 2007 के अंत तक दोनों देशों के बीच संबंध गिरकर सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे, जब यह स्पष्ट हो गया था कि रूस पोत की आपूर्ति वर्ष 2008 की समयसीमा तक नहीं करेगा।

यद्यपि दोनों देशों ने एक अतिरिक्त समझौता किया जिसके तहत भारत पोत की मरम्मत के लिए अधिक कीमत का भुगतान करने पर सहमत हुआ।

भारतीय अधिकारियों ने निजी चर्चाओं में स्वीकार किया कि बढ़ी कीमत के बावजूद यह एक अच्छा सौदा होगा, क्योंकि उसकी तरह का पोत अंतरराष्ट्रीय बाजार में दोगुनी से कम कीमत पर नहीं मिलेगा, लेकिन कोई भी विमानवाहक पोत निर्यात के लिए नहीं बनाता।

आईएनएस विक्रमादित्य पर स्वदेशी निर्मित एवं विकसित एएलएच ध्रुव हेलीकॉप्टरों के साथ सीकिंग हेलीकॉप्टरों की भी तैनाती होगी। आईएनएस विक्रमादित्य पर 1600 कर्मियों की तैनाती रहेगी और यह वस्तुत: समुद्र पर एक ‘तैरते शहर’ की तरह होगा।

इसकी साजोसामान की जरूरत भी काफी होगी, जैसे 1 महीने में इस पर करीब 1 लाख अंडे, 20 हजार लीटर दूध और 16 टन चावल की खपत होगी। नौसेना की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि पूर्ण खाद्य सामग्री के साथ यह पोत समुद्र में 45 दिन तक रह सकता है।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि 8 हजार टन भार क्षमता के साथ पोत 7 हजार समुद्री मील या 13 हजार किलोमीटर की दूरी तक अभियान में सक्षम है। पोत को ऊर्जा 8 बायलरों से मिलती है और यह पोत अधिकतम 30 नॉट प्रति घंटे की गति हासिल कर सकता है।

सेवमेश शिपयार्ड के चीफ डिलीवरी कमिश्नर इगोर लियोनोव ने कहा कि विक्रमादित्य पर लगभग सभी चीज नई है। लियोनाव ने सेवमेश में बातचीत में कहा कि पोत का करीब 40 प्रतिशत पेंदा मूल वाला है, बाकी पूरी तरह से नया है।

उन्होंने कहा कि नौसेना ने पोत की मरम्मत और आधुनिकीकरण की पूरी प्रक्रिया के दौरान अपने इंजीनियरों और तकनीशियनों को पोत पर तैनात किए रखा। नौसेना ने कई उपकरणों, पुर्जों और पूरी केबलिंग की मरम्मत करने की बजाय उसे बदलने का सही निर्णय किया।

लियोनोव विक्रमादित्य की भारत में पश्चिमी तट स्थित करवार स्थित आधार पहुंचने के लिए लगभग 2 महीने की यात्रा के दौरान उस पर तैनात गारंटी टीम का नेतृत्व करेंगे। (भाषा)

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