जर्मनी का नाजी तानशाह एडोल्फ हिटलर द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत समय में खुद को एक मसीहा मानने लगा था और हार की संभावना बढ़ने के साथ उसमें यहूदियों के खिलाफ धर्मयुद्ध की भावना बढ़ने लगी थी। कुछ गोपनीय दस्तावेजों से यह बात खुलकर सामने आई है।
1942 में ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों द्वारा तैयार किए गए इन दस्तावेजों के अनुसार ब्रिटिश विश्लेषकों ने हिटलर के भाषणों में यहूदियों के खिलाफ बढ़ते नफरत के संकेत देखे थे।
बीबीसी की खबर के अनुसार 1942 में कैंब्रिज के शिक्षाविद् जोसेफ मैककर्डी ने अपने इन दस्तावेजों में कहा था कि हिटलर में तेजी से ‘यहूदियों के प्रति भय और नफरत’ की भावना बढ़ रही थी।
मैककर्डी ने कहा कि हिटलर धार्मिक भ्रांतियों से ग्रस्त हो गया है। कैसे विश्वयुद्ध में हार की ओर बढ़ते जर्मनी को देखते हुए उसमें यहूदियों के प्रति जहरीली भावना का विकास होने लगा। उसे लगता था कि यहूदी शैतान का रूप हैं और वह अच्छाई का मसीहा या अवतार है।
मैककर्डी के इस विश्लेषण को कैंब्रिज विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता स्कॉट एंथनी ने सामने रखा है। एंथनी ने कहा कि मैककर्डी ने हार के समय हिटलर की मानसिक अवस्था का विश्लेषण किया। उन्होंने यहूदियों के प्रति उसके मन में बढ़ती घृणा और भय के बारे में बताया है।
60 लाख यहूदियों की मौत के लिए जिम्मेदार हिटलर ने रूस की लाल सेना के कब्जे से बचने के लिए 30 अप्रैल, 1945 को अपनी महिला मित्र इवा ब्राउन के साथ आत्महत्या कर ली थी। (भाषा)