इस्लाम में देवता, स्वर्गदूत या एन्जेल को फरिश्ता कहा गया है। इस्लाम के अनुसार अल्लाह तआला ने फरिश्तों को नूर से बनाया है और उनके अलग-अलग कार्य नियुक्ति किए हैं। कोई अल्लाह का संदेश लाने वाला है तो कोई वर्षादि प्राकृतिक कार्यों के संचालन के लिए नियुक्त है। कोई स्वर्ग का दरोगा है तो कोई जहन्नम का कोतवाल।
फरिश्ते एक बड़ी मखलूक हैं और उनके अनेक कार्य हैं और उनके बहुत सारे गिरोह हैं जिन्हें केवल अल्लाह ही जानता है। उनमें से कुछ अर्श के उठाने वाले हैं : 'अर्श के उठाने वाले और उसके आसपास के फरिश्ते अपने रब की तस्बीह तारीफ के साथ-साथ करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और ईमान वालों के लिए इस्तिगफार करते हैं।' -(सूरतुल मोमिन : 7)
और उन्हीं में से कुछ पैगंबरों पर वही (अल्लाह का संदेश) लेकर उतरते हैं और वह जिबरील अलैहिस्सलाम हैं, जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर कु़रआन लेकर उतरे : 'इसे अमानतदार फरिश्ता (यानी जिबरील अलैहिस्सलाम) लेकर आए हैं। आपके दिल पर (नाजिल हुआ है) कि आप सावधान (आगाह) कर देने वालों में से हो जाएं।' (सूरतुश्शुअरा :193-194)
उन्हीं में से मीकाईल अलैहिस्सलाम हैं, जो वर्षा करने और खेती उगाने पर नियुक्त (आदिष्ट) हैं। उन्हीं में से एक इस्राफील हैं, जो कियामत कायम होने के समय सूर फूंकने पर नियुक्त हैं।
और उन्हीं में से कुछ सभी अच्छे और बुरे कार्यों के लिखने पर नियुक्त हैं: 'जिस समय दो लेने वाले जो लेते हैं, एक दाईं तरफ और दूसरा बाईं तरफ बैठा हुआ है। (इंसान) मुंह से कोई शब्द निकाल नहीं पाता लेकिन उसके पास रक्षक (पहरेदार) तैयार हैं।' (सूरत काफ : 17-18)