वॉक एंड टॉक, वॉक एंड टॉक, वॉक एंड टॉक...। एक मोबाइल कंपनी द्वारा मोबाइल फोन के फायदे गिनवाने वाले प्रचारों को देखकर भले ही मुंह से "व्हाट एन आइडिया सर जी !" बरबस निकल आए पर अगर हम सिक्के के दूसरे पहलू पर गौर करेंगे तो किसी भी आइडिया में ज्यादा दम नजर नहीं आएगा।
मोबाइल फोन और इंटरनेट जैसे माध्यमों ने भले ही हमारी जीवनशैली को सरल व सुविधाजनक बना दिया हो लेकिन मनोचिकित्सकों की राय में इसके ऐसे बहुत से नुकसान हैं, जिसका हमें पता नहीं होता और वे हमारी कई मानसिक परेशानियों की वजह बन जाते हैं। मोबाइल कंपनियों के इस प्रचार से कि कम पैसे में जी भर के बातें करो से अगर हम बच कर रहें तो ही अच्छा है।
जरूरत से ज्यादा फोन पर बात करने वाले या इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए जरूरी है कि वे अपनी इस लत से उपज रहे खतरे को पहचानें और इससे उबरने का प्रयास करें। कुछ ऐसा ही मानना है मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारिख का, जो बताते हैं कि काम के अत्यधिक दबाव, समय की कमी और अकेलेपन के कारण हम फोन और इंटरनेट के जरिए अपने परिवार और शुभचिंतकों से जुड़े रहने का प्रयास करते हैं।
ऐसे में हमें यह पता नहीं चलता कि हम कब मोबाइल फोन पर बात करने या इंटरनेट पर चैट करने के इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि जाने-अनजाने मानसिक विकारों से घिर गए हैं। उनके अनुसार, "जरूरत से ज्यादा फोन पर बात करने या चैट करने से व्यवहार संबंधी कई परेशानियों के पैदा होने की आशंका रहती है। इनमें तनाव, सामाजिक गतिविधियों में रुचि का कम होना, हतोत्साह, निराशा, आक्रामकता और व्यग्रता संबंधी परेशानियां काफी सामान्य हैं।"
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शोध व अनुसंधान कंपनी सी. एंड. आर. द्वारा बच्चों व किशोरों पर करवाए गए सर्वेक्षण में मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग से होने वाली परेशानियों के बारे में काफी महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। कंपनी ने यह सर्वेक्षण अलग-अलग आयुवर्ग के बच्चों और किशोरों पर किया है। इसमें पाया गया है कि फोन के अत्याधिक उपयोग के कारण बच्चों व किशोरों में तनाव और व्यग्रता की परेशानी आम हो चुकी है।
साथ ही, अधिक एसएमएस करने से आंखों पर अधिक दबाव, मानसिक थकान जैसी समस्याएं तो फोन पर अधिक बात करने के कारण अनिद्रा, फोन पर आवश्यकता से अधिक आश्रित होना, झूठ बोलने की प्रवृत्ति जैसी समस्याओं के मामलों में काफी वृद्धि हुई है।
इन मानसिक विकारों से निजात पाने के लिए न सिर्फ मोबाइल फोन या इंटरनेट के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल को कम करने की जरूरत है बल्कि इनसे होने वाली मानसिक समस्याओं से जूझ रहे लोगों को उबरने के लिए अपनी जीवनशैली में व्यापक बदलाव लाने की भी जरूरत है। इसके लिए अगर हम खाली समय में व्यक्तिगत रूप से मिलने-जुलने और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने पर बल दें तो इससे राहत मिल सकती है।
परिवार के लोगों और दोस्तों के साथ बाहर घूमने-फिरने व अन्य गतिविधियों में दिलचस्पी लेने से भी इस तरह की समस्याओं से आसानी से मुक्ति मिल सकती है। रोजमर्रा की दिनचर्या में संतुलन बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण कदम है। जरूरत से ज्यादा फोन पर बात करना न सिर्फ मनोवैज्ञानिक कारणों से सेहत के लिए नुकसानदायक है बल्कि चिकित्सकों का मानना है कि मोबाइल फोन से होने वाले विकिरण (रेडियेशन) से बीमारियों की भी आशंका हो सकती है।