Jagannath Puri Rath Yatra 2024 : प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 07 जुलाई 2024 रविवार को यह रथ यात्रा निकलेगी। विशालकाय रथ में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को विराजमान करके यात्रा निकाली जाती है। आओ जानते हैं कि क्या है जगन्नाथ पुरी की मूर्ति का रहस्य।
वर्ष में जब दो आषाढ़ माह आते हैं तब बदलते हैं मूर्ति.
दारु नाम की नीम की लकड़ी से बनाते हैं मूर्ति
मूर्ति के अंदर ब्रह्मा की स्थापना करते हैं जो श्रीकृष्ण का दिल है.
1. राजा इन्द्रद्युम्न और उनकी पत्नी गुंडिचा देवी के काल में प्रभु जगन्नाथ की मूर्ति बनाने के लिए समुद्र से विशाल लाल वृक्ष का तना निकाला गया।
2. विशालकाय तने को निकालकर उसे रथ के द्वारा उस स्थान पर लाया गया जहां पर श्री नीलमाधव की मूर्ति बनाई गई थी। इसी से मूर्ति बनाई गई थी।
3. तभी से यह परंपरा जारी है कि मूर्तियों के लिए लकड़ी का चयन करना और फिर उनकी मूर्तियां बनाना।
4. नई मूर्ति बनाने के दौरान प्राचीन मूर्ति का एक लट्ठा आज भी नई मूर्ति के भीतर स्थापित किया जाता है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह श्रीकृष्ण का दिल है। जबकि कुछ का मानना है कि यह ब्रह्मा हैं।
5. इस लकड़ी के लट्ठे से एक हैरान करने वाली बात यह भी है कि जब मूर्ति बदलजी जाती है तो उसमें जो लट्ठा भीतर लगाया जाता है उसे आज तक किसी ने नहीं देखा।
6. मंदिर के पुजारी जो इस मूर्ति को बदलते हैं, उनका कहना है कि उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ पर कपड़ा ढक दिया जाता है। इसलिए वे ना तो उस लट्ठे को देख पाए हैं और न ही छूकर महसूस कर पाए हैं।
7. पुजारियों के अनुसार वह लट्ठा इतना सॉफ्ट होता है मानो कोई खरगोश उनके हाथ में फुदक रहा है।
8. पुजारियों का ऐसा मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस मूर्ति के भीतर छिपे ब्रह्मा को देख लेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। मृत्यु के भय की वजह से जिस दिन जगन्नाथ की मूर्ति बदली जानी होती है, उड़ीसा सरकार द्वारा पूरे शहर की बिजली बाधित कर दी जाती है। यह बात आज तक एक रहस्य ही है कि क्या वाकई भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में श्रीकृष्ण का दिल रखा जाता है।
9. भगवान जगन्नाथ और अन्य प्रतिमाएं उसी साल बदली जाती हैं जब साल में आसाढ़ के दो महीने आते हैं। ऐसा अवसर सालों बाद ही आता है। 9 साल पहले प्रतिमाएं बदली गई थीं। ये प्रतिमाएं अलग-अलग हिस्सों से लाए गए नीम के विशेष वृक्षों से तैयार की जाती हैं। इन वृक्षों को विशेष दारू कहा जाता है।
10. भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला होता है, इसलिए नीम का वृक्ष उसी रंग का ढूंढा जाता है। भगवान जगन्नाथ के भाई-बहन का रंग गोरा है, इसलिए उनकी मूर्तियों के लिए हल्के रंग के नीम का वृक्ष ढूंढा जाता है। जगन्नाथ की मूर्ति के लिए दारू चुनने के लिए कुछ खास नियमों का ध्यान रखा जाता है। उसमें 4 प्रमुख शाखाएं होनी चाहिए। वृक्ष के समीप श्मशान, चीटियों की बांबी और जलाशय जरूरी है। वृक्ष के जड़ में सांप का बिल भी होना चाहिए। वह किसी तिराहे के पास हो या फिर तीन पहाड़ों से घिरा होना चाहिए। वृक्ष के समीप वरूण, सहादा और बेल का वृक्ष होना चाहिए।