नास्तं कदाचिदुपयासि न राहु-गम्यः स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जयन्ति । नाम्भोधरोदर-निरुद्ध-महाप्रभावः सूर्यातिशायि महिमाऽसि मुनीन्द्र! लोके ॥ (17)
ओ मुनीन्द्र! अतिशय महिमाशाली सूरज जैसे आप समूचे विश्व को प्रकाशित करते हैं! प्रभावित करते हैं! फिर भी आपको कभी भी बदली की छाया छू नहीं पाती... कि आपके ज्योतिर्मय बिम्ब को राहु ग्रसित नहीं कर पाता।