भगवान महावीर के जन्म से पूर्व एक बार महारानी त्रिशला नगर में हो रही अद्भुत रत्नवर्षा के बारे में सोच रही थीं। यह सोचते-सोचते वे ही गहरी नींद में सो गई। उसी रात्रि को अंतिम प्रहर में महारानी ने सोलह शुभ मंगलकारी स्वप्न देखे। वह आषाढ़ शुक्ल षष्ठी का दिन था। सुबह जागने पर रानी के महाराज सिद्धार्थ से अपने स्वप्नों की चर्चा की और उसका फल जानने की इच्छा प्रकट की।
राजा सिद्धार्थ एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ ही ज्योतिष शास्त्र के भी विद्वान थे। उन्होंने रानी से कहा कि एक-एक कर अपना स्वप्न बताएं। वे उसी प्रकार उसका फल बताते चलेंगे। तब महारानी त्रिशला ने अपने सारे स्वप्न उन्हें एक-एक कर विस्तार से सुनाएं।
आइए जानते है भगवान महावीर के जन्म से पूर्व महारानी द्वारा देखे गए सोलह अद्भुत स्वप्न :-
1. रानी ने पहला स्वप्न बताया : स्वप्न में एक अति विशाल श्वेत हाथी दिखाई दिया। - ज्योतिष शास्त्र के विद्वान राजा सिद्धार्थ ने पहले स्वप्न का फल बताया : उनके घर एक अद्भुत पुत्र-रत्न उत्पन्न होगा।
2. दूसरा स्वप्न : श्वेत वृषभ। - फल : वह पुत्र जगत का कल्याण करने वाला होगा।
3. तीसरा स्वप्न : श्वेत वर्ण और लाल अयालों वाला सिंह। - फल : वह पुत्र सिंह के समान बलशाली होगा।
4. चौथा स्वप्न : कमलासन लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए दो हाथी। - फल : देवलोक से देवगण आकर उस पुत्र का अभिषेक करेंगे।
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5. पांचवां स्वप्न : दो सुगंधित पुष्पमालाएं। - फल : वह धर्म तीर्थ स्थापित करेगा और जन-जन द्वारा पूजित होगा।
6. छठा स्वप्न : पूर्ण चंद्रमा। - फल : उसके जन्म से तीनों लोक आनंदित होंगे।
7. सातवां स्वप्न : उदय होता सूर्य। - फल : वह पुत्र सूर्य के समान तेजयुक्त और पापी प्राणियों का उद्धार करने वाला होगा।
8. आठवां स्वप्न : कमल पत्रों से ढंके हुए दो स्वर्ण कलश। - फल : वह पुत्र अनेक निधियों का स्वामी निधिपति होगा।
9. नौवां स्वप्न : कमल सरोवर में क्रीड़ा करती दो मछलियां। - फल : वह पुत्र महाआनंद का दाता, दुखहर्ता होगा।
10. दसवां स्वप्न : कमलों से भरा जलाशय। - फल : एक हजार आठ शुभ लक्षणों से युक्त पुत्र प्राप्त होगा।
11. ग्यारहवां स्वप्न : लहरें उछालता समुद्र। - फल : भूत-भविष्य-वर्तमान का ज्ञाता केवली पुत्र।
12. बारहवां स्वप्न : हीरे-मोती और रत्नजडि़त स्वर्ण सिंहासन। - फल : आपका पुत्र राज्य का स्वामी और प्रजा का हितचिंतक रहेगा।
13. तेरहवां स्वप्न : स्वर्ग का विमान। - फल : इस जन्म से पूर्व वह पुत्र स्वर्ग में देवता होगा।
14. चौदहवां स्वप्न : पृथ्वी को भेद कर निकलता नागों के राजा नागेन्द्र का विमान। - फल : वह पुत्र जन्म से ही त्रिकालदर्शी होगा।
15. पन्द्रहवां स्वप्न : रत्नों का ढेर। - फल : वह पुत्र अनंत गुणों से संपन्न होगा।
16. सोलहवां स्वप्न : धुआंरहित अग्नि। - वह पुत्र सांसारिक कर्मों का अंत करके मोक्ष (निर्वाण) को प्राप्त होगा।