महावीर निर्वाण दिवस पर विशेष

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'भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत मुझे बहुत प्रिय हैं। मेरी प्रबल अभिलाषा है कि मैं मृत्यु के बाद जैन-धर्मी परिवार में जन्म धारण करूँ।'- जार्ज बर्नाड शॉ
'भगवान महावीर के संदेश किसी खास कौम या फिरके के लिए नहीं हैं, बल्कि समस्त संसार के लिए हैं।' - स्व. पुरुषोत्तमदास टंडन

सह-अस्तित्व का सिद्धांत है जिओ और जीने दो...। जो लोग यह सोचते हैं कि हम दूसरे का अस्तित्व मिटाकर ही सुखी रह सकते हैं या अपनी सत्ता कायम कर सकते हैं, वे जरा इतिहास में झाँककर देखें। हिंसक समाज अपना अस्तित्व स्वयं खो बैठता है। जब एक नहीं रहेगा तो दूसरा भी नहीं रहेगा। सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं। धरती पर वृक्ष नहीं रहेंगे तो बाकी और किसी के बचने की कल्पना नहीं की जा सकती।

एक ओर जहाँ धर्म, समाज, साम्यवाद और राष्ट्रों द्वारा की जा रही हिंसा-प्रतिहिंसा से मानव भयग्रस्त हो चला है, वहीं दूसरी ओर धरती के पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुँचाकर मानव और धरती की सेहत पर भी अब ग्रहण लग गया है।

जबसे धर्म और साम्यवाद का अविष्कार हुआ, मनुष्य तो लुप्त हो ही गया है और इस तथाकथित मनुष्य ने वृक्ष, पशु, मछली और पक्षियों की कई प्रजातियों को भी लुप्त कर दिया है। लुप्त हो गए हैं कई पहाड़ और नदियाँ। ग्लैशियर पिघल रहे हैं और ओजोन परत का हाल भी बुरा है। धरती का तापमान एक डिग्री बढ़ गया है। मौसम अब पहले जैसा नहीं रहा।

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मानवता और पर्यावरण के साथ लगातार किए जा रहे खिलवाड़ के दौर में यदि महावीर और महावीर जैसे महापुरुषों के दर्शन के महत्व को नहीं समझा गया तो सभी को महाविनाश के लिए तैयार रहना चाहिए। मानव समाज इस समय एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहाँ से उसे तय करना है कि धार्मिक कट्टरता, साम्यवादी जुनून और पूँजीवादियों के शोषण के मार्ग पर ही चलते रहना है या फिर ऐसा मार्ग तलाश करना है, जो मानव जीवन और पर्यावरण को स्वस्थ, सुंदर और खुशहाल बनाए।

भगवान महावीर ने अपने विचार कभी किसी पर थोपे नहीं और न ही उन्होंने किसी धर्म की स्थापना की। उन्होंने सिर्फ मानवता और पर्यावरण के प्रति लोगों को सचेत और सजग रहने की सलाह दी। इसके अलावा उन्होंने पहले से चली आ रही कैवल्य प्राप्ति की धारा को सुव्यवस्थित किया।

पर्यावरण : अहिंसा विज्ञान को पर्यावरण का विज्ञान भी कहा जाता है। भगवान महावीर मानते थे कि जीव और अजीव की सृष्टि में जो अजीव तत्व है अर्थात मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति उन सभी में भी जीव है अत: इनके अस्तित्व को अस्वीकार मत करो। इनके अस्तित्व को अस्वीकार करने का मतलब है अपने अस्तित्व को अस्वीकार करना।

जैन धर्म में चैत्य वृक्षों या वनस्थली की परंपरा रही है। चेतना जागरण में पीपल, अशोक, बरगद आदि वृक्षों का विशेष योगदान रहता है। यह वृक्ष भरपूर ऑक्सीजन देकर व्यक्ति की चेतना को जाग्रत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसीलिए इस तरह के सभी वृक्षों के आसपास चबूतरा बनाकर उन्हें सुरक्षित कर दिया जाता था और जहाँ व्यक्ति सिर्फ बैठकर ही शांति का अनुभव कर सकता है।

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जैन धर्म ने सर्वाधिक पौधों को अपनाए जाने का संदेश दिया है। सभी 24 तीर्थंकरों के अलग-अलग 24 पौधे हैं। बुद्ध और महावीर सहित अनेक महापुरुषों ने इन वृक्षों के नीचे बैठकर ही निर्वाण या मोक्ष को पाया।

आज हालात यह है कि मानव हर तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुँचाकर यह समझता है वह बच जाएगा तो यह उसकी भूल है। स्थावर या जंगम, दृश्य और अदृश्य सभी जीवों का अस्तित्व स्वीकारने वाला ही पर्यावरण और मानव जाति की रक्षा के बारे में सोच सकता है।

मानवता : जैन धर्म में क्षमा का बहुत महत्व है। मानवता को जिंदा रखना है तो क्षमा के महत्व को समझना होगा। मनुष्य को धर्म, जाति, समाज और नस्ल के नाम पर बाँटकर रखा गया है। इसके चलते आज के दौर में मानवता को बचाना सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। प्रत्येक व्यक्ति, समाज, संगठन और राष्ट्र में अहंकार तत्व बढ़ गया है, कोई किसी को क्षमा नहीं करना चाहता। हर कोई बदले की भावना में जी रहा है। हिंसा-प्रतिहिंसा का दौरा जारी है

यदि किसी वृक्ष, नदी, पहाड़, समुद्र और मानव के प्रति जाने-अनजाने कोई हिंसा या अपराध किया है तो मैं कहना चाहूँगा- मिच्छामि दुकड़म या उत्तम क्षमा। -शतायु

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