तपगच्छ ईसर सिंहसूरीश्वर, केरा शिष्य वडेरा, सत्यविजय पन्यासतणे पद, कपूर विजय गंभीरा। खिमाविजय तस सुजसविजयना, श्री शुभवीर सवाया, पंडित वीर विजय शिष्ये जिन-जन्ममहोत्सव गाया ॥8॥
उत्कृष्टा एक सोने सित्तेर, संप्रति विचरे वीश, अतीत अनागत काले अनंता, तीर्थंकर जगदीश। साधारण ए कलश जे गावे, श्री शुभवीर सवाई, मंगल लीला सुख भर पावे, घर घर हर्ष बधाई ॥9॥
(यहाँ कलशाभिषेक करना। पीछे दूध, दही, घृत, जल और शकर इन पंचामृत से प्रक्षाल करना। फिर पूजन करके पुष्प चढ़ाना, बाद में लुण उतारकर आरती उतारना)।
मेरुशिखर नवरावे हो सूरपती, मेरु...
शांति-कलश एक कुंडी में कंकु से साथिया करके रूपानाणुं रखना। शांति-कलश करने वाले कपाल में कंकु से चाँदला करके अक्षत लगाना, गले में पुष्पमाला पहनाना। प्रभुजी को अक्षत से वर्धापन करें। बाद में शांति-कलश करनार के दोनों हाथ में कंकुम का साथिया करके ऊपर कलश रखना। फिर उवसहगरम् स्तोत्र बोलकर- तीन नवकार गिनकर कलश से धारा का प्रारंभ। नमोऽर्हत् और एक नवकार गिनकर बृहत् शांति-पाठ बोलना।