महान और प्राचीन धर्म जैन धर्म में 63 शलाका पुरुषों के अलावा भी अन्य कई पुण्य पुरुष हुए हैं। हालांकि यदि हम कैवल्य ज्ञान प्राप्त मुनियों की बात करें तो उनकी कोई गिनति नहीं है अर्थात वे अनगिनत है। आओ पहले हम जान लेते हैं तिरसठ 63 शलाका पुरुषों और अन्य पुण्य पुरुषों के बारे में।
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63 शलाका पुरुष : 63 शलाका पुरुषों में 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलभद्र, 9 वासुदेव और 9 प्रति वासुदेव हैं। इसके अलावा तीर्थंकरों के माता-पिता, 14 कुलकर और उनकी पत्नियां, 11 रुद्र, 9 नारद और 24 कामदेव हुए हैं। आओ जानते हैं सभी के नाम।
*12 चक्रवर्ती :- 1.भरत, 2.सगर, 3.मधवा, 4.सनत्कुमार, 5.शांतिनाथ, 6.कुंथुनाथ, 7.अरहनाथ, 8.सुभौम, 9.पद्म, 10.हरिषेण, 11.जय सेन और 12.ब्रह्मदत्त।...बारह चक्रवर्तियों में से हस्तिनापुर में पांच चक्रवर्ती हुए। हस्तिनापुर में हुए पांच चक्रवर्तियों के नाम सनत्कुमार, शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ, एवं सुभौम चक्रवर्ती। सुभौम तथा ब्रहम्दत्त चक्रवर्ती सातवें नरक में गए हैं। मधवा तथा सानत्कुमार चक्रवर्ती कल्पवासी स्वर्गों में गए है। आठ चक्रवर्ती मोक्ष गए है। भरत, सगर, शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ, पद्म, हरिषेण व जयसेन ये चक्रवर्ती मोक्ष गए हैं।
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*9 बलभद्र :- 1.अचल, 2.विजय, 3.भद्र, 4.सुप्रभ, 5.सुदर्शन, 6.आनंद, 7.नंदन, 8.पदम और 9.राम। श्री मुनिसुव्रत नाथ भगवान एवं नेमिनाथ तीर्थंकर के शासन काल में राम एवं पद्म से बलभद्र हुए हैं। नारायण के बड़े भाई बलभद्र होते हैं। जैसे राम बलभद्र उनके भाई लक्ष्मण नारायण बलभद्र मोक्ष और स्वर्ग में जाते हैं।
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*9 वासुदेव :- 1.त्रिपृष्ठ, 2.द्विपृष्ठ, 3.स्वयम्भू, 4.पुरुषोत्तम, 5.पुरुषसिंह, 6.पुरुषपुण्डरीक, 7.दत्त, 8.नारायण और 9.कृष्ण। जो त्रिखंडी प्रतिनारायण को जीतते हैं तथा प्रतिनारायण के चक्र से उन्हीं को मार देते हैं वे नारायण या विष्णु कहलाते हैं।
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*9 प्रति वासुदेव :- 1.अश्वग्रीव, 2.तारक, 3.मेरक, 4.मुध, 5.निशुम्भ, 6.बलि, 7.प्रहलाद, 8.रावण और 9.जरासंघ। प्रति वासुदेव को प्रतिनारायण और प्रतिविष्णु भी कहते है तथा इन्हें त्रिखंडी भी कहते हैं। जो कर्मभूमि के विजयार्ध के नीचे के तीन खंडों- 1.आर्यखंड, 2.मलेच्छ खंडों को जीतते हैं वे त्रिखंडी, प्रतिनारायण या प्रतिविष्णु कहलाते हैं।
तीर्थंकर श्री आदिनाथजी- भीमावली, श्री अजितनाथजी- जितशत्रु, श्री पुष्पदंतजी- रूद्र, श्री शीतलनाथजी- वैश्रवानर, श्री श्रेयांसनाथजी- सुप्रतिष्ठ, श्री वासुपूज्यजी- अचल, श्री विमलानाथजी- पुंडरीक, श्री अनंतनाथजी- अजितधर, श्री धर्मनाथजी- अजितनाभि, श्री शांतिनाथजी- पीठ, और श्री महावीरजी- सात्यिकी पुत्र।
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*9 नारद : 1.भीम 2.महाभीम 3.रुद्र 4.महारूद्र 5.काल 6.महाकाल 7.दुर्मुख 8.नरमुख और 9.अधोमुख। सभी नारद अति रूद्र होते हुए दूसरों को रूलाया करते हैं, वे पाप के निधान कलह प्रिय युद्ध प्रिय होने से नकर जाते हैं।
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*24 कामदेव :- 1.बाहुबली, 2.अमित तेज, 3.श्रीधर, 4.यशोभ्रद्र, 5.प्रसेनजित, 6.चन्द्रवर्ण, 7.अग्निमुक्त, 8.सनत्कुमार, 9.वत्सराज, 10.कनकप्रभ, 11.सिद्धवर्ण, 12.शांतिनाथ, 13.कुंथुनाथ, 14.अरहनाथ, 15.विजयराज, 16.श्रीचन्द, 17.राजानल, 18.हनुमान, 19.बलगंज, 20.वसुदेव, 21.प्रद्युम्न, 22.नागकुमार, 23.श्रीपाल और 24.जम्बूस्वामी।... उस समय के मुनष्यों में जो सबसे सुन्दर आकृति के धारक होते हैं। वे कामदेव कहलाते हैं।