जैन धर्म के अनुसार श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के मोक्ष कल्याणक दिवस मनाया जाता है। दिगंबर एवं श्वेतांबर जैन मंदिरों में भगवान पार्श्वनाथ की विशेष पूजा-अर्चना, शांतिधारा कर निर्वाण लाडू चढ़ाने की प्रथा है। जयकारों एवं मंत्रोच्चार के साथ भगवान का अभिषेक, विश्व की मंगल कामना एवं सुख-समृद्धि के लिए शांतिधारा, सामूहिक पूजा की जाती है। निर्वाण कांड के सामूहिक उच्चारण के बाद निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है तथा भगवान पार्श्वनाथ की आरती की जाएगी। इसके साथ ही मोक्ष (मुकुट) सप्तमी के उपलक्ष्य में कुंवारी कन्याएं पूरे दिन का उपवास रखेंगी।
हमें अपनी आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए मोहरूपी शत्रु का नाश करना पड़ता है। अत: हमें सभी का सम्मान करना चाहिए। सब बड़ों के प्रति विनय भाव रखना चाहिए, क्योंकि विनय ही मोक्ष का द्वार है। इसीलिए सभी को चैतन्य प्रभु से रिश्ता जोड़ना चाहिए, क्योंकि पुण्यात्मा जहां भी चरण रखते हैं वहां से दुख, अंधकार, कषाय, क्लेश स्वमेव ही प्रकाश व सुखों में परिवर्तित हो जाते हैं।
प्रभु का स्पर्श तो हमें स्वर्ण ही नहीं पारस बना देता है। हम भी पार्श्व प्रभु की तरह अपने भवों को कम करके निर्वाण प्राप्ति की ओर बढ़ें। अत: तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के मोक्ष कल्याण पर शिखरजी क्षेत्र की पूजा व निर्वाण कांड का पाठ करने पश्चात निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है। जिस प्रकार यह लाडू रस भरी बूंदी से निर्मित किया जाता है, उसी प्रकार अंतरंग से आत्मा की प्रीति रस से भरी हो जाए तो परमात्मा बनने में देर नहीं लगती।
इस दिन खास तौर पर जैन समाज की बालिकाएं सामूहिक रूप से निर्जला उपवास करती है, दिन भर पूजन, स्वाध्याय, मनन-चिंतन, सामूहिक प्रतिक्रमण करते हुए संध्या के समय देव-शास्त्र-गुरु की सामूहिक भक्ति कर आत्म चिंतन करती है। शाम को उनको घोड़ी-बग्घी में बिठाकर घुमाया जाता है तथा अगले दिन उनका पारण कराया जाता है। यह पर्व जैन धर्मावलंबियों में मोक्ष सप्तमी के नाम से जाना जाता है।