पर्युषण विशेष : दिगंबर जैन समुदाय का दशलक्षण पर्व...
* त्याग, तप और संयम से गुजरेगा दसलक्षण पर्व
प्रतिवर्ष की तरह दिगंबर जैन समुदाय के पर्युषण पर्व यानी दशलक्षण पर्व शनिवार, 26 अगस्त से शुरू हो गए हैं। आत्मचिंतन का यह पर्व हर साल ही चातुर्मास के दौरान भाद्रपद मास में मनाया जाता है। इस दौरान निरंतर धर्माराधना करने का प्रावधान है।
इन दिनों में जैन श्वेतांबर धर्मावलंबी पर्युषण पर्व के रूप में 8 दिनों तक जप, तप, ध्यान, स्वाध्याय, सामायिक तथा उपवास, क्षमा पर्व आदि विविध प्रयोगों द्वारा आत्मचिंतन करते हैं तत्पश्चात दिगंबर जैन धर्मावलंबी दशलक्षण पर्व के रूप में 10 दिनों तक पर्युषण पर्व में आराधना करते हैं जिसमें क्षमा, मुक्ति, आर्जव, मार्दव, लाघव, सत्य, संयम, तप, त्याग तथा ब्रह्मचर्य इन 10 धर्मों द्वारा आत्मचिंतन कर अंतर्मुखी बनने का प्रयास करते हैं।
जैन धर्म संसार के सबसे पुराने मगर वैज्ञानिक सिद्धांतों पर खड़े धर्मों में से एक है। इसकी अद्भुत पद्धतियों ने मनुष्य को दैहिक और तात्विक रूप से मांजकर उसे मुक्ति की मंजिल तक पहुंचाने का रास्ता रोशन किया है। अनेक पर्व-त्योहारों से सजी इसकी सांस्कृतिक विरासत में शायद सबसे महत्वपूर्ण और रेखांकित करने जैसा सालाना अवसर है पयुर्षण का। इसे आत्मशुद्धि का महापर्व भी कहा जाता है।
'पयुर्षण' का शाब्दिक अर्थ है सभी तरफ बसना। परि का मतलब है बिन्दु के और पास की परिधि। बिन्दु है आत्म और बसना है रमना। 10 दिनों तक खुद ही में खोए रहकर खुद को खोजना कोई मामूली बात नहीं है। आज की दौड़भागभरी जिंदगी में जहां इंसान को चार पल की फुर्सत अपने घर-परिवार के लिए नहीं है, वहां खुद के निकट पहुंचने के लिए तो पल-दो पल भी मिलना मुश्किल है। इस मुश्किल को आसान और मुमकिन बनाने के लिए जब यह पर्व आता है, तब समूचा वातावरण ही तपोमय हो जाता है।
पर्युषण के दिनों में जैन धर्म के मौलिक तत्वों से लाभ उठाने का मौका मिलता है। यह प्राणीमात्र पर दया का संदेश भी देता है। साधार्मिक भक्ति यानी साथ-साथ धर्म में रत लोगों के प्रति आस्था और अनुराग। तेले (आठम) तप यानी उपवास। ऐसी क्रिया, ऐसी भक्ति और ऐसा खोया-खोयापन जिससे अन्न, जल तक ग्रहण करने की सुध न रहे। और अंत में आता है क्षमापना यानी वर्षभर के बैरभाव का विसर्जन करने का अवसर।
दशलक्षण पर्व के दिनों में में घर में शुद्ध खाना बनता है, जो कुछ खाते हैं ताजा ही खाते हैं। यहां तक कि पानी भी बाहर का नहीं पीते। कई घरों में व्रत तो नहीं करते लेकिन सारा नियम-कायदा मानते हैं। मंदिर जाते हैं, सुबह पूजा-पाठ, आरती, प्रवचन सुनना, शास्त्र वाचन, धार्मिक कार्यक्रम आदि सब करते हैं। इन दिनों में प्रवचन सुनना सबसे अच्छा माना गया है जिससे हमारे मन में अच्छे विचारों का संचार होता है और हम बुराइयों से दूर रहते हैं।
अत: हमें ध्यान रखना चाहिए कि इन 10 दिनों में हमारा मन धर्म की ओर लगा रहे ताकि प्रायश्चित और प्रार्थना की आंच में हमारे विकार भस्म हो और हमारी आत्मा अपने असल रूप को पाकर खिल उठे।