(सर्वप्रथम दो बार पंचांग खमासमण देना)
इच्छामि खमासमणो! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि ॥
इच्छामि खमासमणो! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि॥
(फिर खड़े होकर और दोनों हाथ जोड़कर)
इच्छकार, सुहराई! (सुहदेवसौ) सुखतप-शरीर निराबाध! सुख संजम जात्रा निर्वहोछोजी। स्वामी साता छे जी! भात पाणी का लाभ देजोजी ॥
फिर पदवीधारी मुनिराज (आचार्य, उपाध्याय, पन्यास, गणि) हों, तो एक खमासमण और देना। बाद में खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर-
इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! अब्भुट्ठिओमि अब्भिंतर राइअं (देवसि अं) खामेउं? इच्छं, खामेमि राइअं (देवसिअं)
(यह कहकर नीचे बैठकर दाहिना हाथ गुरु महाराज के सामने नीचे स्थापन करके सिर झुकाकर निम्न पाठ बोलना)
जंकिंचि अपत्तिअं, परपत्तिअं भत्ते पाणे विणए, वेयावच्चे आलावे संलावे, उच्चासणे, समासणे, अंतरभासाए, उवरिभाषाए, जंकिंचि मज्झ विणय परिहीणं, सुहुमं वा बायरं वा तुब्भे जाणह अहं न जाणामि, तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
(बाद में खड़े होकर एक खमासमण देना फिर)
इच्छाकारी भगवन् पसाय करी पच्चक्खाण का आदेश देनाजी।
ऐसा कहकर जो पच्चक्खाण लेना हो, वह गुरु महाराज से लेना।
(नोट- सुबह से दोपहर 12 बजे तक 'सुहराई' और 12 बजे से शाम तक 'सुहदेवसी' बोलना।)