पहले हम जैन हुआ करते थे, फिर श्वेतांबर और दिगंबर हुए। इसके बाद दस पंथी व तेरह पंथी हुए, फिर स्थानक व मंदिरवासी हुए। यह कहना है प्रदेश स्तर के प्रशासनिक अधिकारी सुधीर कोचर का। वे आचार्य जयंतसेन सूरीश्वरजी के जन्मदिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि अब हम व्यक्तिवादी होकर रह गए हैं। जैन समाज के सिद्घांतों को नहीं आजकल व्यक्ति विशेष को पूजा जाता है।
कोचर ने कहा कि एक भगवान को मानने वाले हम लोग अलग-अलग विचार धाराओं के हो गए हैं। यही हमारी एकता का सबसे कमजोर कारण है। उन्होंने कहा कि हमने बाह्य तप को सबकुछ मान लिया जबकि आंतरिक तप की कोई कीमत नहीं रही। आज बड़ी-बड़ी तपस्या करने वालों के तो बहुमान किए जाते हैं, किंतु सच बोलने और चरित्रवान व्यक्ति का कोई बहुमान नहीं करता।
हम आज भी युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल नहीं हो पाए है। अच्छे लोगों को हाशिए पर धकेल दिया। हमने सभी दान कर लिए लेकिन अब समयदान करने की जरूरत है। युवाओं को समाज के प्रति समर्पित रहना बहुत जरूरी है। माता-पिता को चाहिए कि वे अभी से अपने बच्चों में संस्कार के बीज बोएँ ताकि वे हमारी संस्कृति को जीवित रख सकें।