1. सम्यक्दर्शन- जिस गुण के विकास से सत्य की प्रतीति हो या जिससे आत्मस्वरूप के प्रति श्रद्धा और अभिरुचि हो, उसका नाम है सम्यक्दर्शन।
2. सम्यक्ज्ञान- नय और प्रमाण से जीव आदि तत्वों का सम्यक् दर्शनपूर्वक जो ज्ञान होता है, उसका नाम है सम्यक्ज्ञान।
3. सम्यक्चारित्र- सम्यक्ज्ञानपूर्वक जो चारित्र धारण किया जाता है, उसका नाम है सम्यक्चारित्र। आत्मस्वरूप में स्थिर होना सम्यक्चारित्र है। इसमें हिंसा आदि दोषों का त्याग किया जाता है और अहिंसा आदि साधनों का अनुष्ठान किया जाता है।