janmashtami bhajan for kids: अगर आपका बच्चा स्कूल में है और इस जन्माष्टमी पर उसे भगवान् श्रीकृष्ण से जुड़े भजन, गीत या कविता याद करवाना चाहते हैं तो यह आलेख आपके लिए बहुत काम का है। इस लेख में हम आपके लिए भगवान् श्रीकृष्ण पर आधारित सुन्दर कविताएं, गीत और भजनों का संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। आप अपने बच्चे की उम्र और कक्षा के अनुरूप इस संकलन में से अपनी पसंद के अनुसार कोई भी गीत उसे याद करवा सकते हैं।
जन्माष्टमी पर कविता 1. कदम्ब का पेड़ (सुभद्राकुमारी चौहान)
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता
उस नीची डाली से अम्मा उंचे पर चढ़ जाता
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता
बहुत बुलाने पर भी मां जब नहीं उतर कर आता
मां, तब मां का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता
तुम आंचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आंखें मीचे
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता
और तुम्हारे फैले आंचल के नीचे छिप जाता
तुम घबरा कर आंख खोलतीं, पर मां खुश हो जाती
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे
2. मां के ठाकुर जी (सुभद्राकुमारी चौहान)
ठंडे पानी से नहलातीं,
ठंडा चंदन इन्हें लगातीं,
इनका भोग हमें दे जातीं,
फिर भी कभी नहीं बोले हैं।
मां के ठाकुर जी भोले हैं।
3. कृष्ण की चेतावनी (रश्मिरथी, रामधारी सिंह दिनकर)
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।
मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।
दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!
दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।
उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।
दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।
भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।
अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।
जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण।
बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?
हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।
टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा।
भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।
थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े।
केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित,
1. यशोमती मैया से बोले नंदलाला
यशोमती मैया से बोले नंदलाला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला
बोली मुस्काती मैया ललन को बताया
काली अंधियरी आधी रात में तू आया
लाडला कन्हैया मेरा काली कमली वाला
इसीलिए काला
बोली मुस्काती मैया सुन मेरे प्यारे
गोरी गोरी राधिका के नैन कजरारे
काले नैनों वाली ने ऐसा जादू डाला
इसीलिए काला
इतने में राधा प्यारी आई इठलाती
मैंने न जादू डाला बोली बलखाती
मैया कन्हैया तेरा जग से निराला
इसीलिए काला
2. कन्हैया किसको कहेगा तू मैया
कन्हैया किसको कहेगा तू मैया ।
एक ने तुझको जनम दिया रे एक ने तुझको पाला ॥
मरने के डर से भेज दिया घर से देवकी ने गोकुल में,
बिना दिए जन्म यशोदा बनी माता तुझ को छिपाया आंचल में ।
एक ने तुझको जीवन दिया रे एक न जीवन संवारा...कन्हैया ॥
मानी मनताएं और देवी देव पूजे पीर सही देवकी ने,
गोद मे खिलाने का दूध मे नहलाने का सुख पाया यशोदा जी ने ।
एक ने तुझको दी है रे आंखें,एक ने दिया उजाला... कन्हैया ।।