कैसे करें जन्माष्टमी के दिन बाल गोपाल कृष्ण की पूजा, जानें

मंगलवार, 16 अगस्त 2022 (15:02 IST)
भाद्रपद के कृष्‍ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 18 अगस्त 2022 रात्रि 9 बजकर 20 मिनट से अष्टमी प्रारंभ होगी जो 19 अगस्त को रात्रि 10:59 तक रहेगी। श्रीकृष्‍ण का जन्म रात्रि को 12 बजे हुआ हुआ तो इस मास से 18 को जन्माष्टमी रहेगी लेकिन कुछ लोग उदयातिथि के मान से 19 अगस्त को भी मनाएंगे। आओ जानते हैं बाल गोपाल का पूजन कैसे करें।
 
 
1. पूजा की पूर्ण तैयारी करने के बाद पूजन से पूर्व झूला सजाकर उसमें बाल कृष्ण को विराजमान किया जाता है। विराजमान करने के पहले उनका श्रृंगार करें।
 
2. इस दिन व्रत का संकल्प लें और व्रत रखकर ब्रह्मचर्य का पालन करें।
 
3. प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
 
- इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें :
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
 
- अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें।
Lord Krishna Worship
- तत्पश्चात यदि श्रीकृष्ण के बाल रूप को झूले में विराजमान नहीं किया है तो उनकी मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
 
- मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो।
 
- इसके बाद विधि-विधान से पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करें। षोडश यानी 16 प्रकार की सामग्री से उनका पूजन करें।
 
- पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए।
 
फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें :-
'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।'
 
- भगवान को उनकी पसंद का भोग लगाएं और आरती उतारें।
 
- अंत में रतजगा रखकर भजन-कीर्तन करें। रात्रि में भगवान के जन्म के समय शंख, घंटा, मृदंग व अन्य वाद्य बजाकर भगवान का जन्मोत्सव मनाना चाहिए। 
 
- जन्म के बाद उन्हें धनिया-शक्कर की पंजीरी, मक्खन व खीर का भोग लगाना चाहिए। साथ ही प्रसाद वितरण करके कृष्‍ण जन्माष्टमी पर्व मनाएं।
 
- व्रत के दूसरे दिन व्रत का पारण कर मंदिरों में ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, रजत, स्वर्ण व मुद्रा दान करना चाहिए।

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