वर्तमान समय 2020 अनेक उतर-चढ़ावों के साथ ऐतिहासिक क्षणों को अपने में कैद कर रहा है जैसा मनोहारी वातावरण इस समय भारत भूमि पर चल रहा है शायद ही कोई समय रहा हो। सावन में शिव आराधना, अयोध्या राम मंदिर निर्माण उस पर जन्माष्टमी श्री कृष्ण जन्म दिवस का आना, भक्तिरंगी इंद्र धनुष की आभा में भक्तों को अनोखा आनंद प्रदान कर रहा है। इस आनंद सागर में कौन डुबकी लगाने से वंचित रहना चाहेगा? ऐसा सौभाग्य तो नसीबों वालों को ही मिलता है जिनके अनंत, कोटि-कोटि पुण्य रहे होंगें।
“हिंदुस्तान में तो दो ही राजा हुए हैं- एक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चन्द्र और दूसरे जगद्गुरु श्री कृष्ण। हिन्दुओं पर तो इन्हीं दोनों का राज चलता है। राजनिष्ठा तो अब इन्हीं के प्रति संभव है। भूमि और द्रव्य के ऊपर राज्य करने वाले कोई और हों किन्तु हिन्दुओं के हृदय पर तो राज्य करने वाले ये दो ही हैं।” कितना सत्य है न ये, जो ‘एक साधु’में जो कि काका कालेलकर द्वारा ‘जीवन साहित्य’में उद्धृत किया गया है।
भाई परमानन्द ने भी ‘मेरे अंत समय के विचार’में कहा है- “श्रीकृष्ण क्या हैं? वे हिन्दू राष्ट्रीयता की आत्मा हैं। श्री राम और श्रीकृष्ण ये दो नाम हिन्दू जाति के प्राण हैं। हमारी राष्ट्रीयता या जातीयता सबसे बढ़ कर इन दो नामों से बंधी हुई है।यदि ये दो नाम हमसे बाहर निकल आए तो हमारा राष्ट्र या जाति मृतप्राय हो जाए।”
राम मनोहर लोहिया जी ने कितना सुंदर आभास लिखा है ‘कृष्ण’में –“कहना मुश्किल है कि कौन उन्नीस कौन बीस हैं श्रीराम और श्रीकृष्ण में। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि स्वयं ब्रज के चारों ओर की भूमि के लोग भी वहां एक-दूसरे को “जै रामजी”से नमस्ते करते हैं।”
कैसे अलग हो सकते हैं राम-कृष्ण हमारे जीवन से, राष्ट्र से, संस्कृति से...और हर हिन्दू की सांसों और हृदय की धडकनों से। साने गुरुजी का यह भारतीय संस्कृति में कहा कथन कितना सटीक है-“भारतीय हृदय के चिरंजीव राजा दो ही हैं, एक अयोध्याधीश राजा रामचंद्र दूसरे द्वारिकानाथ श्रीकृष्ण। और कई दूसरे राजा-महाराजा आए और गए, लेकिन इन दो राजाओं का राज अटल है। उनके सिंहासन पर अन्य कोई सत्ताधीश नहीं बैठ सकता। भारतीय संस्कृति मानो राम-कृष्ण ही हैं।”
वैसे तो “सायोध्या यत्र राघव:” अर्थात् जहां राम वहीं अयोध्या है ( भास, प्रतिमा नाटक), और वाल्मीकि ने भी “रामायण के अरण्यकाण्ड” में कहा है- “रामो विग्रहवान् धर्मः” राम धर्म के मूर्त रूप हैं। “कृष्णमस्तु भगवान् स्वयम्” कृष्ण स्वयं भगवान हैं (भगवत 1/3/28), “तुलसीदास इहै अधिक कान्ह पहिं, निकेई लागत मन रहत समाने। ” कृष्ण में यह विशिष्टता है कि वे सदा-सदा अच्छे ही लगते हैं इसी से मन में समाए रहते हैं। (तुलसी दास, श्री कृष्ण गीतावली) ऐसा ही तो मानना है हम सभी का, समस्त हिन्दुओं का. इनका यशोगान हम सभी की अंतरात्मा का निकला भाव गीत ही तो है अति निर्मल...सत्य...अटल...
“यदि राम द्वारा रावण का वध तथा कृष्ण के सहाय द्वारा जरासंध और कौरवों का दमन नहीं हो सकता तो भी राम कृष्ण की गतिविधि में पूरा सौन्दर्य रहता पर उसमें भगवान की पूर्ण कला का दर्शन न होता क्योंकि भगवान की शक्ति अमोघ है।” रामचंद्र शुक्ल ने “रस मीमांसा” में जो कहा है उससे न केवल सारे हिन्दू अपने पूरे अंतर्मन से सहमत हैं, बल्कि सारे जीवन मूल्य भी उनके ही आचरण पर आश्रित और आधारित हैं।
दान, दक्षता, शास्त्र ज्ञान, शौर्य, लज्जा, कीर्ति, उत्तम, बुद्धि, विनय, श्री, धृति, तुष्टि और पुष्टि ये सभी सद्गुण भगवान श्रीकृष्ण में नित्य निवास करते हैं, विद्यमान रहते हैं। ऐसे गुणों से युक्त महाप्रभु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और साथ में समस्त कलाओं से परिपूर्ण कर्मयोगी श्रीकृष्ण अपने हर रूप में हमारे हृदय में विराजित हों, स्मरण में हों और सदैव अपनी कृपा हम पर बनाए रखें। सभी जन को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की बधाई...जय श्री कृष्ण...