बजरंग बाण पाठ का संपूर्ण लाभ पाना है तो जानिए हनुमान अष्टमी पर कैसे करें यह अचूक प्रयोग
* भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति करना है तो जानिए कैसे करें बजरंग बाण का पाठ
जय श्रीराम, जय रामभक्त हनुमान...
29 दिसंबर, शनिवार को हनुमान अष्टमी है। अत: यह दिन हनुमान जी और शनि की कृपा प्राप्ति के लिए विशेष महत्व रखता है। श्री हनुमान जी इस युग में साक्षात देवों में से एक हैं। बहुत से हनुमान भक्त न केवल दुख-क्लेशों से दूर रहते हैं बल्कि उनकी उन्नति भी उत्तरोत्तर होती रहती है। आइए जानते हैं भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए बजरंग बाण के अमोघ विलक्षण प्रयोग के बारे में...
सबसे पहले अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमान जी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिए शुद्ध स्थान तथा शांत वातावरण आवश्यक है।
ध्यान रहे कि यह साधना कहीं एकांत स्थान अथवा एकांत में स्थित हनुमान जी के मंदिर में प्रयोग करें। हनुमान जी के अनुष्ठान में अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्व होता है। 5 अनाजों (गेहूं, चावल, मूंग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगा जल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएं।
दीपक में बत्ती के लिए अपनी लंबाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लंबाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को 5 बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगंधित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दीया जलता रहना चाहिए। पूजन करते समय हनुमान जी को सुगंधित गुग्गल की धूनी से सुवासित करते रहें।
ध्यान रहें कि जप के पहले यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमान जी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे। शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारंभ करें। 'श्रीराम' से लेकर 'सिद्ध करें हनुमान' तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।
गुग्गल की सुगंधि देकर जिस घर में बजरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहां दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। यदि किसी कारण नित्य पाठ करने में असमर्थ हो तो प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।
चमत्कारी श्री बजरंग बाण
बजरंग बाण ध्यान
श्रीराम
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।