हनुमानजी का मंत्र जपने का क्या है प्रभाव, परिणाम और महत्व

WD Feature Desk
सोमवार, 15 जुलाई 2024 (13:09 IST)
Effect of Hanumanji's mantra: हनुमानजी के बहुत सारे मंत्र हैं। वैदिक मंत्र, पौराणिक मंत्र, साबर मंत्र और तांत्रिक मंत्र। सभी को जपने का तरीका और सभी के प्रभाव अलग-अलग है। गृहस्थ लोगों को उनके मूल मंत्र का ही जप करना चाहिए। कहते हैं कि यदि कर्म अच्‍छे हैं तो उनका मं‍त्र तुरंत ही सिद्ध होने लगता है। कम से कम 43 दिनों तक रोज एक माला लगातर जपने से यह मंत्र सिद्ध होने लगता है। आओ जानते हैं उनके मंत्र को जपने से क्या प्रभाव होता है।ALSO READ: महाभारत के युद्ध में जब हनुमानजी को आया गुस्सा, कर्ण मरते-मरते बचा
 
मूल मंत्र : ॐ हं हनुमते नम:
 
मंत्र का प्रभाव और परिणाम : उपरोक्त मंत्र को जपते रहने से जब यह मंत्र सिद्धि होने लगेगा तो एक दिन आपको यह अहसास होने लगेगा कि धीरे-धीरे आपके संकट दूर होने लगे हैं। आपको हर क्षण यह अहसास होने लगेगा कि आपकी सहायता करने के लिए कोई आसपास है। आपकी सोची हुई बात या मनोकामना पूर्ण होने लगेगी। सभी तरह की अलाबला दूर हो जाती है। आप खुद को बंधन मुक्ति जैसे महसूस करेंगे। मन का भय धीरे-धीरे मिट जाता है। निश्चिंत और निर्भक जीवन की और आपके कदम बढ़ते जाएंगे। सफलता के मार्ग में आर रही रुकावटें दूर हो जाएगी।
 
मंत्र जपने का तरीका: सुबह हनुमाजी के चित्र को एक स्वच्छ पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। धूप दीप जलाएं और भोग लगाएं। इसके बाद खुद कुशासन पर बैठकर आंखें बंदकर एक माला यानी 108 बार जप करें। इस इसी मंत्र को दिनभर मन ही मन जपते रहें। जब भी याद आए जपते रहें।
 
मंत्र जप का महत्व : आपके जीवन में किसी भी प्रकार की घटना दुर्घटना के योग नहीं बनेंगे। हर जगह से आप बचकर निकल जाओगे। कोई शत्रु आपका कुछ बिगाड़ नहीं पएगा। निर्दोष हो तो कोर्ट कचहरी के मुकदमों में जीत होगी। हनुमानजी का विशेष आशीर्वाद मिलेगा। उनके गण आपकी सहायता के लिए आएंगे।ALSO READ: कोटा का वह मंदिर जहां हनुमानजी खुद ही पर्चा बनाकर देते हैं, जानें चमत्कार
 
हनुमानजी के अन्य मंत्रो का प्रभाव :-
 
इन मंत्रों के अलावा इन मंत्रों का जाप भी विशेष तौर पर किया जाता है- 
- ॐ हं हनुमते नम:
- ॐ अं अंगारकाय नमः
- मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
- अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
 

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