कृष्ण भगवान ने कहा - बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था। तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी।
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी। एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। भाइयों से रहा नहीं गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया।
एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी - देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया। भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई।
अब वह दुखी हो विलाप करने लगी, तभी वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा।