Karwa Chauth 2024: करवा चौथ का व्रत भारतीय परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए उपवास करती हैं। करवा चौथ के व्रत में एक खास परंपरा है मिट्टी के करवे से अर्घ्य देने की। आइये जानते इसके पीछे का महत्त्व और कारण ।
करवा चौथ पर मिट्टी के करवे से क्यों दिया जाता है अर्घ्य?
अर्घ्य देने की परंपरा सदियों पुरानी है, और इसे मिट्टी के करवे के माध्यम से करना एक विशेष धार्मिक महत्व रखता है। मिट्टी के करवे को शुभ और शुद्ध माना जाता है, जो धरती से जुड़ी प्राकृतिक ऊर्जा का प्रतीक होता है। यह करवा पति-पत्नी के अटूट संबंधों का भी प्रतीक है, जो मिट्टी की तरह मजबूत होते हैं।
क्या हैकरवा चौथ और माता सीता का सम्बन्ध
करवा चौथ का व्रत सीधा माता सीता से भी जुड़ा हुआ है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान राम वनवास पर थे, तब माता सीता ने भी इसी प्रकार का व्रत किया था। उन्होंने अपने पति की सुरक्षा और लंबी उम्र के लिए यह उपवास रखा था। कहा जाता है कि उन्होंने मिट्टी के करवे से भगवान को अर्घ्य दिया था, जो आज भी करवा चौथ की परंपरा में शामिल है।
यह भी माना जाता है कि जिस प्रकार माता सीता ने भगवान राम के लिए व्रत रखा था, उसी प्रकार आज की महिलाएं भी अपने पतियों की रक्षा और लंबी उम्र की कामना करती हैं। मिट्टी के करवे से अर्घ्य देने का यह रिवाज तब से ही चला आ रहा है।
मिट्टी के करवे से अर्घ्य देने का महत्व
धार्मिक पहलू के साथ-साथ मिट्टी के करवे से अर्घ्य देने का एक वैज्ञानिक पक्ष भी है। मिट्टी से बने करवे पर्यावरण के अनुकूल होते हैं और इन्हें इस्तेमाल के बाद आसानी से पुनः धरती में मिलाया जा सकता है, जिससे प्रदूषण नहीं फैलता। इसके अलावा, मिट्टी से बने बर्तन स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माने जाते हैं।
सांस्कृतिक दृष्टि से, मिट्टी का करवा भारतीय समाज में धरती माता का प्रतीक भी है, जो जीवनदायिनी मानी जाती हैं। इस प्रकार करवा चौथ के व्रत में मिट्टी के करवे का प्रयोग धरती से जुड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को भी दर्शाता है।
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