करवा चौथ की पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है, जब नीलगिरी पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गए। तब किसी कारणवश उन्हें वहीं रूकना पड़ा। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आ पड़ा।
तब चिंतित व शोकाकुल द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया तथा कृष्ण के दर्शन होने पर पांडवों के कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा।
तब कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! मैं तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण जानता हूं। उसके लिए तुम्हें एक उपाय करना होगा। जल्दी ही कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम पूरे मन से करवा चौथ का व्रत रखना। भगवान शिव, गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे तथा सबकुछ ठीक हो जाएगा।
कृष्ण की आज्ञा का पालन कर द्रोपदी ने वैसा ही करवा चौथ का व्रत किया। तब उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सारी चिंताएं दूर हो गईं।
जब मां पार्वती द्वारा भगवान शिव से पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना की विधि पूछी तब शिव ने 'करवा चौथ व्रत’रखने की कथा सुनाई थी।